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Friday, July 21, 2023

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजकल हर तरफ तो मैं नारी का अपमान होते हुऐ देखती हूँ, सुनती हूँ और सोशल मीडिया पर पढ़ती भी हूँ। अपने घरों में, पड़ोस में, समाज में जो गाली गलौच वाली भाषा है वो भी नारी शक्ति को ही कमज़ोर साबित करने के लिये है। परिवार में,समाज में कोई झगड़ा हो, आपसी मतभेद हो, नारी शक्ति को ही चरित्रहीन साबित कर दो,उसी को ही शर्मसार कर दो। मुद्दा चाहे कोई भी हो नारी शक्ति को ही निशाना बनाकर खुद को ताकतवर घोषित कर दो।

   मणिपुर से संबंधित कुछ पोस्ट आज पढ़ने को मिली, फोटो देखने को मिली, बड़ा ही शर्मनाक है ये। आज वहाँ हो रहा है कल को कहीं भी हो सकता है। घिन्न आती है ऐसे समाज में रहकर जहाँ एक नारी की कोख से ही जन्म लेकर ज़िंदगी भर ज़ब कुछ पुरुष नारियों को ही गलत दृष्टि से देखते हैं। ऐसा करके वे अपनी मां का अपमान करते हैं। अपने परिवार, समाज और देश की छवि ख़राब करते हैं।

   मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी से बहुत आहत हूँ। एक एक आवाज़ बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है। हमें नारी शक्ति और जलते मणिपुर के बचाव के लिये आवाज़ उठानी ही चाहिये। ✍️अनुजा कौशिक

Wednesday, March 1, 2023

वो एक अज़नबी दोस्त

ये एक वाक्या है छोटे शहर की शांति से निकलकर बड़े शहर की चकाचौंध में खुद को असहाय पाने का। बहुत दिनों के बाद देहरादून से अपने मायके द्वारका ( दिल्ली) जाना था। देहरादून से जैसे ही दिल्ली जाते हैँ तो दम घुटने जैसा एहसास होता है। यूँ तो देहरादून में भी आजकल भीड़ बहुत ज्यादा है और जाम भी लगता है पर दिल्ली से तो कम ही है। जैसे ही मेट्रो स्टेशन पहुंची तो पता चला कि दिल्ली में द्वारका के स्टेशन एक से कहीं ज्यादा हैं। बड़ी असमंजस की स्थिति थी। वहाँ टिकट काउंटर पर बैठे एक सज़्ज़न से पुछा कि टिकट कहाँ से और कैसे लेनी है? तो उसने एक ऑटोमेटिक मशीन की तरफ ईशारा किया। अब यें क्या बला थी.. देहरादून में तो नहीं देखी थीं कभी ऐसी मशीन। काफ़ी देर तक समझने की कोशिश की कि आखिर टिकट लेनी कैसे हैं। अंडरग्राउंड स्टेशन होने की वजह से घर में भी किसी से बात नहीं हो पा रही थी और मैं बस ईधर से उधर टहले जा रही थीं। महसूस हो रहा था पढ़े लिखे अनपढ़ जैसा। अब मेरी भी क्या गलती थी इसमें.. अब या तो उत्तराखंड की वादियों का मज़ा ले लो या फिर दिल्ली महानगर की टेक्नोलॉजी का। आखिर मुझे एक महिला आती हुईं दिखाई दी। हिम्मत करके मैंने उसके साथ अपनी समस्या साझा की। बहुत ही दोस्ताना व्यवहार था उसका और जल्दी ही हम अच्छे दोस्त बन गये थे। उसने मेरी टिकट लेने में मदद की और बोली *आप पहली बार मेट्रो में अकेले आये हो, होता है ऐसा* और मुझे पता भी नहीं चल पा रहा था कि द्वारका में जाना कहाँ है। आखिर उसके कहने पर किसी सेक्टर की टिकट ना लेकर द्वारका की टिकट ली गयी। उसके साथ से थोड़ा इज़ी महसूस कर रही थी। खूब गप्पे शप्पे हुईं। एक दूसरे की ज़िंदगी के बारे में बातें साझा की गयीं। थोड़े ही देर में बहुत अच्छे मित्र जो बन गये थे। जैसे मानो बहुत वर्षों से एक दूसरे को जानते हों। थोड़ी देर बाद घर वालों से भी सम्पर्क हो गया और सही तरीके से मैं घर पहुंच सकी। उस दिन एहसास हुआ कि हर इंसान का हमारी ज़िंदगी में आना कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं होता, कोई ना कोई कारण अवश्य होता है। आज भी हम सोशल मीडिया पर जुड़े हैं। ज़ब भी वो वाक्या याद आता है तो एक मुस्कुराहट होठों पर दौड़ जाती है। धन्यवाद मेरे उस अज़नबी दोस्त का जो थोड़ी देर के लिए ज़िंदगी में आई और मेरी मुस्कुराहट का कारण बनी । यही तो है ज़िंदगी ठीक से समझें तो छोटे छोटे पल भी ख़ुशी दे जाते हैं। ज़िंदगी में हम एक दूसरे को कैसा महसूस कराते हैं ये बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमने किसको कैसा महसूस कराया और किसी ने हमें कैसा महसूस कराया ये कभी नहीं भूलाया जा सकता। इसलिये सबके साथ अच्छी यादें बनाना बहुत ज़रूरी है ताकि कभी एकान्त में हम उन सुनहरी यादों को याद करके खुश हो सकें। है कि नहीं? आप सब क्या कहते हैं? 😊✍️अनुजा कौशिक



Monday, March 7, 2022

सच्ची उपलब्धि क्या है - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ सोच रही थी तो एक विचार आया कि कितना संघर्ष पूर्ण होता है एक महिला का जीवन। घर से लेकर ऑफिस तक काम का बोझ थका देता है फिर भी माथे पर कोई शिकन नहीं। लेकिन आज मैं बात करना चाहती हूँ उन महिलाओं को लेकर जिनके ऊँची उड़ान भरने के बहुत सारे सपने होते हैँ और वे इसके लिए पूर्ण रूप से काबिल भी होती हैँ परन्तु कभी कभी उन्हें अपने सपनों की कुर्बानी देनी ही पड़ती है या यूं कहें कि मुश्किल फैंसला लेना होता है। आसान नहीं होता ये सब, इसके लिए बहुत बड़ी सोच चाहिये। लेकिन फिर भी प्रयास करते रहना चाहिये खुद की आत्मसंतुष्टि के लिए।

ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ।पूरी तरह से काबिल होने के बावज़ूद मुझे कई बार पारिवारिक़ ज़िम्मेदारियों के चलते ये मुश्किल् फैंसला लेना पड़ा। ऐसा नहीं है कि जॉब नहीं मिली। बहुत अच्छी अच्छी जॉब मिली, थोड़े से दिन करके फिर से छोड़ देनी पड़ी। कभी कभी थोड़ी खीज़ सी हुई ,बहुत सारी महत्वाकक्षांयें थीं जीवन की। परन्तु कभी पढ़ाई करनी नहीं छोड़ी। कुछ पढ़ना, कुछ लिखना, सामाजिक मुद्दों पर लिखकर अपनी आवाज़् उठाना, काउंसलिंग करना, किसी समाज सेवी संस्था के साथ जुड़कर काम करना, सेमिनार,वर्कशॉप् में भागीदारी लेना..ये सब बहुत संतुष्टि दे रहे थे। लगा जैसे यही जीवन का उद्देश्य है। मेरे द्वारा की गयी काउन्सलिंग से लोगों को सुकून मिला। मेरे लेखन के लिए प्रोत्साहन मिला, कई बार अखबारों में, मेगज़ीन्स में, किताब में मेरी कविताएं छपी, नारी सशक्तिकरण के लिए लिखी एक कविता के लिए *नारी गौरव सम्मान* मिला। दिल्ली और हैदराबाद की दो संस्थाओं द्वारा महिला दिवस पर अवार्ड के लिए चयन हुआ। सामाजिक मुद्दों पर बनाये गये वीडियोज पर प्रशंसा मिली और इसके साथ ढेर सारी आत्मसंतुष्टि,आत्मविश्वास और आंतरिक खुशी।

किसी ने पूछा कितने पैसे कमा लेती हो ये सब करके। मैने उत्तर दिया - कुछ नहीं सिर्फ अवार्ड, सर्टिफिकेट्स और खुशी।

*फिर क्या फायदा ऐसी उपलब्धि का* सामने से उत्तर आया।

मैने कहा *मैने जीवन में कमाकर भी देखा मगर परिस्थितियों के साथ संतुलन बनाते बनाते अगर आप बिना कमाए भी कुछ प्राप्त करते हैँ तो ये आपके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है और इसके साथ साथ टेलेंट भी बेकार नही जाता*

अक्सर समाज के लोग घर पर रहने वाली महिलाओं को कमतर आँकने लगते हैँ या खुद महिला ही आत्मविश्वास की कमी महसूस करने लगती है। परन्तु ऐसा नहीं है अगर आपके जीवन के खर्चे सुचारु रूप से चल रहे हैँ तो छोटी छोटी उपलब्धियां ही खुशी का कारण बन सकती हैँ। हमें बस अंदर से अच्छा महसूस होना चाहिये। जिसे जिसमें संतुष्टि मिले उसे उसमे खुश रहना चाहिये क्योंकि एक संतुष्ट और खुशी से भरा मन ही सुंदर और खुशहाल जीवन का आधार हो सकता है। और खुशहाल जीवन एक सुखी परिवार का और सुखी परिवार एक सुंदर उल्लासपूर्ण समाज का। यही है सबसे ऊँची उपलब्धि। 

आप क्या सोचते हैँ इस बारे में? व्यक्त कीजियेगा।✍️ अनुजा कौशिक




Tuesday, February 15, 2022

खोखले रिश्ते

 ऐसा क्यों है जब हम किन्हीं खास मुद्दों ( जिन पर बात किया जाना बहुत ज़रूरी है) पर बात करने की कोशिश करते हैँ तब गलतफहमियां बढ़ जाती हैँ , नाराज़गी बढ़ जाती हैँ या फिर दुश्मनी हो जाती है। बातचीत ही बंद हो जाती हैँ? हम शिक्षित होने के बावज़ूद ना ठीक से भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैँ, ना सुन पाते हैँ और ना ही समझ पाते हैँ। बस ऐसे ही शुरुआत होती है रिश्तों में समझौतों की। जो लोग महत्वपूर्ण होते हैँ उन्हें छोड़ नहीं सकते लेकिन समझौता करके खुश रहने की कोशिश , रिश्तों को बचाने की कोशिश की जाती है। हमारे रिश्ते इतने खोखले क्यों हैँ ? हम एक दूसरे के लिए विश्वसनीय इंसान क्यों नहीं बन पाते कि एक दूसरे से पूछा जाए तो हम ठीक वैसा ही बताएं जैसा हम महसूस करते हैँ। झूठ बोलने की ज़रूरत ही ना पड़े, खामोश रहने की ज़रूरत ही ना पड़े। ✍️ अनुजा कौशिक


Tuesday, December 14, 2021

गीता जयंती विशेष - संवाद ज़रूरी है

 


श्री कृष्ण और अर्जुन संवाद जो गीता उपदेश बनकर आज भी हमारा मार्गदर्शन कर रहा है।

एक संवाद ही तो था जिसने अर्जुन को युद्ध में विचलित होने से बचा लिया और श्री कृष्ण ने सारथी के रूप में उसे वो उपदेश दिया जो गीता के रूप में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया। 

श्री कृष्ण और विदुर संवाद जिसने प्रेम को उसकी ऊंचाईयों पर पहुंचा दिया।

श्री कृष्ण और राधा संवाद, गोपियों और उद्धव के बीच संवाद, श्री राम और विभीषण के बीच संवाद, केवट और श्री राम के बीच संवाद, श्री कृष्ण और कर्ण के बीच संवाद, श्री कृष्ण और द्रोपदी के बीच संवाद.....संवाद जब भी किसी अच्छे उद्देश्य के साथ हुआ है उसने इतिहास रचा है। अच्छे उद्देश्य के लिए किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं होता। एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना और निस्वार्थ प्रेम के साथ स्वार्थी नहीं सारथी बनने की कोशिश करना यही धर्म है। तर्क वितर्क सब व्यर्थ है। ✍️ अनुजा कौशिक 

Saturday, October 9, 2021

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ( World Mental Health Day )

 


#worldmentalhealthday2021 

मानसिक स्वास्थ्य और हम। मेरा मनपसंद विषय जिस पर अक्सर लिखना और बोलना पसंद करती हूँ क्योंकि सबसे पहले हम मनुष्य है- भावनाओं से निर्मित ईश्वर की अनूठी कृति। सारे जीवन की गुणवत्ता हमारी भावनाओं की गुणवत्ता पर ही निर्भर करती है। 


आये दिन ना जाने कितनी घटनायें हमारे आसपास होती हैँ, ना जाने कितने लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण मौत को गले लगाते हैँ। कभी कभी हम खुद भी जूझ रहे होते हैँ अपने अतीत के ट्रॉमा से,अपने दिन प्रतिदिन की उलझनों से, रिश्तों में घुटन से।


 इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हर कोई अपनी ज़िंदगी जीने में लगा है..सब बीजी हैँ, कोई किसी के लिए अब ज़िम्मेदारी महसूस नहीं करता, संवेदनाहीन हो गये हैँ। दया, करुणा,सहानुभूति जैसे शब्द तो बस जैसे अब दिखावे के लिए रह गये हैँ । कोई अब बैठकर पीठ थपथपाना नहीं चाहता, कोई सुनना, समझना नहीं चाहता..पता नहीं कहाँ जाना है इंसान को। प्रेम भाव तो जैसे लुप्त हो गया। ईश्वर को विभिन्न रूपों में पूजने वाले इस देश में हम उनके गुणों को आत्मसात नहीं करते बस आडंबर किये जाते हैँ। 


थक जाता है इंसान खुद को व्यक्त करते करते , खुद को समझते समझाते और जब अपनी भावनाओं के भंवर में फंसकर जब असहाय महसूस करता है तो रुख करता है किसी अपने विश्वसनीय रिश्ते की ओर और वहाँ भी लगती है ठोकर क्योंकि ज़ज़ करने लगते हैँ अपने और गलत ठहराने लगते हैँ। जिस बात का डर था वही होता है। अब मज़बूत बनकर भावनाओं को दबाकर अकेले में रोते रहने के सिवा और कोई चारा नहीं। या तो बिखर गया या निखर गया। बहुत बुरी परिस्थिती में आत्महत्या को गले लगा लेता है।


एक दूसरे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हम सभी एक दूसरे के अपराधी हैँ । कौन है जो जीवन में संघर्ष नहीं करता ? कौन है जो किसी मानसिक उलझन से नहीं गुज़र रहा ? कौन है जिसकी ज़िंदगी बिल्कुल सीधी सादी गुज़र् रही है ? जब किसी की मौत हो जाती है तो पहुँच जाते हैँ हम नकली आँसू बहाने, अर्थी को कंधा देने। जीते जी वे कंधे कहाँ चले जाते हैं? जीते जी क्यों नहीं वक्त निकाल पाते ? क्यों मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना आज भी एक Social Stigma है?


आज के दिन हमें प्रण लेना चाहिए कि कोई भी इंसान आसपास परेशान होगा और हमारे पास अपनी समस्या लेकर आएगा तो हम इग्नोर नहीं करेंगे। बिना ज़ज़ किये सुनकर समझकर उसकी समस्या का हल ढूंढने में उसकी सहायता करेंगे। खुशहाल रिश्ते ही खुशहाल मानसिक स्वास्थ्य की नींव हैँ। शेयर और केयर ही है समस्या का असली हल। वो कहते हैँ ना  *If you wish to be happy..Practice Compassion & If you wish to make others happy- Practice Compassion*  ✍️ अनुजा कौशिक

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...