अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस की शाम कुछ विचार मन में आया कि क्या हमारा युवा वर्ग वास्तव में सही दिशा में जा रहा है? क्या उसे हम वैसी शिक्षा दे पा रहें हैँ जैसी दी जानी चाहिए? क्या हम उनका सही मार्गदर्शन कर पा रहें हैँ? जैसा कि आज कृष्ण जन्माष्टमी भी है क्या हमारा युवा श्री कृष्ण जी के चरित्र से कुछ सीख सकता है? इसी पर कुछ लिखने की कोशिश.. आजकल के अधिकतर माता पिता का लक्ष्य होता है कि उनके बच्चे अच्छे मार्क्स लाएं और प्रतियोगी परीक्षाएं पास करें..अच्छी जॉब प्राप्त करें और जीवन में खूब पैसा कमायें और तरक्की करें..परंतु मेरे विचार में किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान भी बहुत ज़रूरी है..हमारा युवा सीख ही नहीं पा रहा कैसे ज़िन्दगी को बेहतर और साधारण ढंग से जीया जा सकता है..हमारी शिक्षा युवा वर्ग को सिर्फ पैसा कमाने के..झूठी शान के अंधे कुएँ में धकेल रही है.. संस्कार और आदर्श तो जैसे धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति की भेंट चढ़ते चले जा रहें हैँ.. सहनशक्ति और धैर्य जैसे गुण भी कम होते जा रहें हैँ..जीवन की थोड़ी सी विकट स्थिति देखते ही हमारा युवा आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठाने को जैसे तत्पर ही है..जिस उम्र में हमारा युवा समाज और देश के प्रति ज़िम्मेदार होना चाहिये उस उम्र में वह अवसाद और मानसिक तनाव के कारण गुमराह हो रहा है..जीवन में जो भी घटित होता है हम उन्हें उनके पीछे छिपे उद्देश्य को सिखा पाने में क्यों असक्षम हैँ? जीवन का असली उद्देश्य तो अंतर्मन को जागृत करके अपने परिवार, समाज, देश और इस संसार के सभी प्राणियों के लिये सद्भावना रखना है..जब तक जीवन है तब तक इस ब्रह्माण्ड में अपनी सकारात्मक ऊर्जा फैलाना और दूसरों के सुख दुख में सहयोग करना ही इस जीवन की सार्थकता है..
जन्माष्टमी को मनाने का उद्देश्य भी यही है कि हम श्री कृष्ण जी के जीवन से कुछ सीखें..अंधकार से उजाले की ओर प्रयासरत रहना, सच्ची दोस्ती, अमिट निस्वार्थ प्रेम, सदैव धर्म के रास्ते पर चलना, हर किसी को उचित सम्मान देना, समय आने पर चतुराई से भी काम लेना, धैर्य और सहनशीलता जैसे दिव्य गुण अपनाकर क्रोध को छोड़ देना, अहंकार से दूर रहना,अपना ज्ञान दूसरों के कल्याण के लिये बांटते रहना, ज़िन्दगी को ज़िंदादिली से जीना और समस्या स्वरूप नहीं समाधान स्वरूप बनना..और भी बहुत कुछ है उनसे सीखने को..
कुल मिलाकर निचोड़ यह है कि हमें युवा वर्ग को प्रेरित करना चाहिये ये समझने के लिये कि हमारा जन्म सिर्फ अपने लिये नहीं हुआ है..स्वार्थी होने के लिये नहीं सारथी होने के लिये हुआ है..ये जीवन बहुत खूबसूरत है और इसका उद्देश्य किताबी ज्ञान और पैसा कमाने से कहीं ज्यादा है..अगर हमारा आज का युवा ये समझ जाए तो आने वाली पीढ़ियां स्वर्ग पाएंगी इस धरा पर..ये सिर्फ व्यवहारिक ज्ञान नहीं हमारा कर्तव्य भी है..और इसकी शुरुआत के लिये सबसे पहले हम बड़ों को अपने अंदर ये सुन्दर गुण भरने होंगे..तभी अपने युवा को भी प्रेरित कर पायेंगे क्योंकि हम उनके रॉल मॉडल्स हैँ.. अगर हम ही जीवन में उलझ कर रहेंगे तो अपने युवा वर्ग को कैसे सुलझा पायेंगे.? हमें अपने Belief Systems से ऊपर उठकर सोचने की ज़रूरत है..कुछ रूढ़िवादियों से ऊपर उठने की ज़रूरत है..क्यों नहीं हम अपनी युवा पीढ़ी को समय रहते अपने पवित्र ग्रंथों जैसे महाभारत, भगवद्गीता और रामायण पढ़ने के लिये प्रेरित करते..जिनमें जीवन को संतुलित ढंग से जीने के सारे सुझाव उपलब्ध हैँ..क्यों नहीं प्रेरित करते उन्हें महान लोगों की जीवनियाँ पढ़ने के लिये जिन्होने युवा होते हुए समाज और देश के लिये बहुत बलिदान दिए..त्याग किया..मेरा अनुभव है ये अगर बच्चों का दोस्त बनकर उन्हें यह सब सिखाया जाए तो यह सच में काम करता है..सही मार्गदर्शन बहुत ज़रूरी है..
आपको ये लेख कैसा लगा..आपकी क्या राय है..? ज़रूर लिखियेगा..✍️✍️ अनुजा कौशिक