Anugoonz

Friday, August 21, 2020

सच का सामना

 

सच्चे इंसान को कुछ याद नहीं रखना पड़ता उसे सब याद रहता है..सच में जीना आसान नहीं होता..इसका सामना सभी नहीं कर सकते क्योंकि उसके लिये हमें अपने अंदर के डर और असुरक्षा के विरुद्ध जाना होता है..लाज़वाब रिश्ते चाहियें तो गहराई से तो निभाने ही पड़ेंगें..फिर उनमें त्याग भी होगा..समर्पण भी और प्रेम भी..और जब हम जीवन के उद्देश्य के प्रति जागरूक हो जाते हैँ तो सिर्फ प्रेम होता है..समझ होती है..हम एक दूसरे के लिये प्रेरणा बनते हैँ..हमारे अंदर का सच और झूठ ही हमारे लिये दुआ और बददुआ बनकर हमारा पीछा करता रहता है..हमें किसी और से तो डरने की ज़रूरत ही नहीं..हम जैसा सोचते हैँ वैसे ही हो जाते हैँ..हमें खुद पर काम करने की सबसे ज्यादा ज़रूरत है..जीवन के जिन अनदेखे पहलुओं से भागते हैँ हम शायद वहीं देखने समझने की ज्यादा ज़रुरत है..वहीं पर है असली समाधान..अंदर से सच्चा होने के लिये खुद को बिल्कुल खाली करना पड़ता है..फिर कोई नकारात्मकता नहीं होगी जीवन में..प्रेम समाधान है और स्वार्थ सबसे बड़ी समस्या..खुद से सच जो बोलता है वास्तव में वह बहुत सुंदर है..सत्यम शिवम् सुंदरम..ॐ नम: शिवाय..जय श्री राधे कृष्ण 🙏♥️💐 अपने विचार ज़रूर रखियेगा ✍️✍️

Saturday, August 15, 2020

क्या वास्तव में भारत देश आज़ाद है...?

 देश को आज़ाद हुए 74 वर्ष हो गए..अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद हुए वर्षों बीत गए..क्या हम आज़ाद हो पाए अपने रूढ़िवादी विचारों की गुलामी से? ..क्या मिटा पाए दिलों की दूरियां? इतने वर्षों में क्या खोया क्या पाया..पाया भी बहुत कुछ पर खोया भी बहुत कुछ है..इसी पर कुछ लिखने की कोशिश..अपने विचार ज़रूर रखियेगा ✍️✍️


Wednesday, August 12, 2020

अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस और श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष

 


अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस की शाम कुछ विचार मन में आया कि क्या हमारा युवा वर्ग वास्तव में सही दिशा में जा रहा है? क्या उसे हम वैसी शिक्षा दे पा रहें हैँ जैसी दी जानी चाहिए? क्या हम उनका सही मार्गदर्शन कर पा रहें हैँ? जैसा कि आज कृष्ण  जन्माष्टमी भी है क्या हमारा युवा श्री कृष्ण जी के चरित्र से कुछ सीख सकता है? इसी पर कुछ लिखने की कोशिश..

 आजकल के अधिकतर माता पिता का लक्ष्य होता है कि उनके बच्चे अच्छे मार्क्स लाएं और प्रतियोगी परीक्षाएं पास करें..अच्छी जॉब प्राप्त करें और जीवन में खूब पैसा कमायें और तरक्की करें..परंतु मेरे विचार में किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान भी बहुत ज़रूरी है..हमारा युवा सीख ही नहीं पा रहा कैसे ज़िन्दगी को बेहतर और साधारण ढंग से जीया जा सकता है..हमारी शिक्षा युवा वर्ग को सिर्फ पैसा कमाने के..झूठी शान के अंधे कुएँ में धकेल रही है.. संस्कार और आदर्श तो जैसे धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति की भेंट चढ़ते चले जा रहें हैँ.. सहनशक्ति और धैर्य जैसे गुण भी कम होते जा रहें हैँ..जीवन की थोड़ी सी विकट स्थिति देखते ही हमारा युवा आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठाने को जैसे तत्पर ही है..जिस उम्र में हमारा युवा समाज और देश के प्रति ज़िम्मेदार होना चाहिये उस उम्र में वह अवसाद और मानसिक तनाव के कारण गुमराह हो रहा है..जीवन में जो भी घटित  होता है हम उन्हें उनके पीछे छिपे उद्देश्य को सिखा पाने में क्यों असक्षम हैँ? जीवन का असली उद्देश्य तो अंतर्मन को जागृत करके अपने परिवार, समाज, देश और इस संसार के सभी प्राणियों के लिये सद्भावना रखना है..जब तक जीवन है तब तक इस ब्रह्माण्ड में अपनी सकारात्मक ऊर्जा फैलाना और दूसरों के सुख दुख में सहयोग करना ही इस जीवन की सार्थकता है..

जन्माष्टमी को मनाने का उद्देश्य भी यही है कि हम श्री कृष्ण जी के जीवन से कुछ सीखें..अंधकार से उजाले की ओर प्रयासरत रहना, सच्ची दोस्ती, अमिट निस्वार्थ प्रेम, सदैव धर्म के रास्ते पर चलना, हर किसी को उचित सम्मान देना, समय आने पर चतुराई से भी काम लेना, धैर्य और सहनशीलता जैसे दिव्य गुण अपनाकर क्रोध को छोड़ देना, अहंकार से दूर रहना,अपना ज्ञान दूसरों के कल्याण के लिये बांटते रहना, ज़िन्दगी को ज़िंदादिली से जीना और समस्या स्वरूप नहीं समाधान स्वरूप बनना..और भी बहुत कुछ है उनसे सीखने को..

कुल मिलाकर निचोड़ यह है कि हमें युवा वर्ग को प्रेरित करना चाहिये ये समझने के लिये कि हमारा जन्म सिर्फ अपने लिये नहीं हुआ है..स्वार्थी होने के लिये नहीं सारथी होने के लिये हुआ है..ये जीवन बहुत खूबसूरत है और इसका उद्देश्य किताबी ज्ञान और पैसा कमाने से कहीं ज्यादा है..अगर हमारा आज का युवा ये समझ जाए तो आने वाली पीढ़ियां स्वर्ग पाएंगी इस धरा पर..ये सिर्फ व्यवहारिक ज्ञान नहीं हमारा कर्तव्य भी है..और इसकी शुरुआत के लिये सबसे पहले हम बड़ों को अपने अंदर ये सुन्दर गुण भरने होंगे..तभी अपने युवा को भी प्रेरित कर पायेंगे क्योंकि हम उनके रॉल मॉडल्स हैँ.. अगर हम ही जीवन में उलझ कर रहेंगे तो अपने युवा वर्ग को कैसे सुलझा पायेंगे.? हमें अपने Belief Systems से ऊपर उठकर सोचने की ज़रूरत है..कुछ रूढ़िवादियों से ऊपर उठने की ज़रूरत है..क्यों नहीं हम अपनी युवा पीढ़ी को समय रहते अपने पवित्र ग्रंथों जैसे महाभारत, भगवद्गीता और रामायण पढ़ने के लिये प्रेरित करते..जिनमें जीवन को संतुलित ढंग से जीने के सारे सुझाव उपलब्ध हैँ..क्यों नहीं प्रेरित करते उन्हें महान लोगों की जीवनियाँ पढ़ने के लिये जिन्होने युवा होते हुए समाज और देश के लिये बहुत बलिदान दिए..त्याग किया..मेरा अनुभव है ये अगर बच्चों का दोस्त बनकर उन्हें यह सब सिखाया जाए तो यह सच में काम करता है..सही मार्गदर्शन बहुत ज़रूरी है..

आपको ये लेख कैसा लगा..आपकी क्या राय है..? ज़रूर लिखियेगा..✍️✍️ अनुजा कौशिक 

Sunday, August 9, 2020

धैर्य और सहनशीलता

 धैर्य और सहनशीलता कोई कमज़ोरियाँ नहीं हैँ ये तो शक्तियां हैँ जो इंसान को विपरीत परिस्थितियों में भी आशावान बनाये रखती हैँ और हम कई गलत फैंसले लेने से बच जाते हैँ लेकिन आजकल लोगों में शायद ये दो शक्तिशाली गुण बचे ही नहीं..हर कोई उतना ही रिश्ता निभाना चाहता है जितना किसी से मतलब सीधा हो सकता है..बस खुद को श्रेष्ठ समझने की गलतफहमी में अक्सर इंसान भूल जाता है कि क्या गलत है उस पर बात करनी थीं..कौन गलत है उस पर नहीं..क्या इतनी भी सहनशीलता नहीं होती इंसान में कि थोड़ा समय देकर एक दूसरे के विचारों को सम्मान दिया जाए..सुना जाए..पर इतना धैर्य कहाँ होता है सभी में..मित्र वो नहीं होते जो हर वक्त आपकी प्रशंसा ही करते जाएँ फिर चाहे हम कितने भी गलत क्यों ना हों..एक अच्छा और सच्चा मित्र वही जो हमें हमारे मुँह पर हमारी गलती बताकर हमें गुमराह होने से बचाये..धैर्य और सहनशीलता तो होनी ही चाहिये..कितने उदाहरण हैँ हमारे ग्रंथों में...हमारे प्रिय श्री राम चंद्र जी की सहनशीलता और धैर्य ने कितने रिश्तों को संजोये रखा..श्री लंका जाते वक्त अगर हनुमान जी धैर्य नहीं दिखाते तो इतना बड़ा समुद्र लाँघ पाना नामुमकिन था..धैर्य वास्तव में हमें विपरीत परिस्थितियों में मुश्किलों को सहन करने की शक्ति देता है और हमें बहुत सारी नकारात्मक प्रवृतियों जैसे क्रोध और ईर्ष्या से बचाये रखता है..धैर्य और सहनशीलता हमारे चरित्र के मज़बूत स्तंभ हैँ..जो धैर्यवान और सहनशील होता है वो कतई बेवकूफ नहीं होता..आप क्या कहते हैँ इस बारे में ?  

Thursday, August 6, 2020

2020 - An year with a Spiritual Vision

We welcomed year 2020 warm heartedly..we hoped this year would be a successful and ecstatic year.. but soon we realized that it was nothing like that..gradually an era of devastating experiences continued..may be to teach us some important lessons about Humanity..We all are giving too much importance to the scientific developments & materialistic things..it seems humans treat themselves as they are God on this earth..but the almighty nature has the different way of proving that the humans are just petty things on this earth..Mother nature has shown us with several incidents that all other species are to be treated with respect and looked upon with the same dignity..This year the Amazon rain forest fires, Australian bushfires, this killer corona virus, USA vs Iran..India vs China conflicts and so on And the assassination of George Floyd by White policeman which enraged the people all across the world..And now a massive explosion in Lebanon that raised the critics against what we human beings are doing to this beautiful planet..why do we need to collect explosives, slaughter animals..why so much violence, distress and conflicts..Our Egos..? It seems that Mother nature wants to end this world or teach us some valuable lessons about Humanity...🤔

For some people the year 2020 might be an agonising year but Don't you all think that this year has provided us with the conditions of harnessing ourselves with spiritual vision and Becoming a well being full of compassion and affection..Don't you think that this year is teaching us all to return to our basic nature -*innocence* ?

*Kalyug se Satyug ki aur.. Isn't it?* 

✍️Anuja Kaushik 

Tuesday, August 4, 2020

ये हमारा नवोदय ही था

ये हमारा नवोदय ही था जिसने हमें सरलता का पाठ पढ़ाया..दुनियां को देखने का हमारा नज़रिया ही बदल डाला..सब मिलजुलकर रहते थे..ना कोई जाति पाति थी..ना ही कोई दिखावा था..बस इतना सख्त अनुशासन था कि ईमानदारी कूट कूट कर भर दी गयी..अनुशासन तोड़ने पर जो कठोर सज़ा मिलती थी उसने कुछ ज्यादा ही आदर्शवादी बना दिया था..पढ़ाई करके जब बाहर निकले तो एक अलग ही नज़ारा था दुनियां का.. बहुत अलग थी बाहर की दुनियां..चालाकी तो जैसे सीखना ही भूल गये थे हम और ये जो नवोदयन्स होते हैँ ना थोड़े टेढ़े होते हैँ पर मुश्किलों में भी कभी मुस्कुराना नहीं छोड़ते  क्योंकि बचपन से लेकर बड़े होने तक माता पिता के प्रेम से दूर सख्त अनुशासन के बीच अपनी ज़िम्मेदारियाँ खुद संभालते हैँ..आज भी नवोदय परिवार में उतना ही प्रगाढ़ प्रेम है..यही कारण है कि मतलब के लिये रिश्ते बनाना आज भी नहीं आया..शायद इसलिए हर रिश्ते में आज भी वही गहराई, अनुशासन और ईमानदारी देखते हैँ हम क्योंकि हमारी जड़ों की सिंचाई भी इसी से हुई है..बाहरी दुनियां ने थोड़ा निराश किया पर गर्व है मुझे एक नवोदयन होने पर..हमने पढ़ाई और तरक्की से ज्यादा एक ज़िम्मेदार इंसान होना सीखा है..✍️अनुजा कौशिक 

Monday, August 3, 2020

रक्षाबंधन : एक अलग दृष्टिकोण से

रक्षाबंधन एक पवित्र त्यौहार जिसमे बहन अपने भाई की कलाई पर एक पवित्र धागा बाँधकर उससे अपनी रक्षा का वचन लेती है..भाई उसकी रक्षा करने के लिये वचनबद्ध हो जाता है..पुराने समय में द्रौपदी ने श्री कृष्ण को राखी बाँधी थीं तो उन्होंने वक्त आने पर चीरहरण के वक्त उसकी रक्षा की..ऐसे बहुत से उदाहरण आज के समय में भी हो सकते हैँ..पर एक प्रश्न मेरे जेहन में जो अक्सर उठता है आखिर ये रक्षा की ज़रुरत आन ही क्यों पड़ती है? किसने ठहराया नारी को इतना कमज़ोर..क्या वास्तव में नारी इतनी कमज़ोर है? जो नौ महीने एक जीव को गर्भ में रखकर, प्रसव पीड़ा सहन करके जन्म दे सकती है..दिन रात जागकर कष्ट सहकर बड़ा कर सकती है अपने बच्चों को..उसके बावज़ूद पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर काम कर सकती है तो वह कमज़ोर कैसे हो सकती है? सगे भाई बहन की बात अलग है पर इससे हटकर एक सवाल क्या किसी भी औरत को इज़्ज़त देने के लिये उसे बहन जैसा माना जाना ज़रूरी है..क्या दोस्त बनकर किसी औरत की इज़्ज़त नहीं की जा सकती? अगर बहन की रक्षा के लिये रक्षाबंधन का त्यौहार बनाया गया तो मैं पूछती हूँ इस पुरुष प्रधान समाज में एक स्त्री के मन में डर बैठ ही क्यों जाता है..क्यों असुरक्षित महसूस करती है वो खुद को..क्यों विश्वास नहीं कर पाती वो जल्दी से किसी पुरुष पर..कुछ अपवाद हो सकते हैँ पर ये सच है मौक़ापरस्ती अधिकतर पुरुषों की नीयत में है..चरित्रहीनता की उपाधि तो जैसे नारी के लिये ही बनी है..आखिर क्यों नहीं पुरुष अपनी नज़रें ठीक कर लेते जो घूम फिरकर सिर्फ एक स्त्री के शरीर पर ही जा ठहरती हैँ..किसने बनाया इस समाज को पुरुष प्रधान और किस आधार पर? क्या सिर्फ शारीरिक बल ही मज़बूत होने का प्रमाण है? आत्मीयता और प्रेम के आधार पर एक स्त्री कहीं ज्यादा सुंदर और मज़बूत है..भाई बहन के प्रेम तक बात बहुत खूबसूरत है..परंतु जहाँ सुरक्षा की बात है मुझे लगता है कि समय के साथ साथ सोच भी बदले जाने की ज़रुरत है..सारे भाई प्रण लें कि अपनी बहन के साथ साथ इस समाज की सभी स्त्रियों के लिये एक सुरक्षित और सभ्य समाज का निर्माण करेंगें..तभी है रक्षाबंधन जैसे पवित्र त्योहारों की सार्थकता अन्यथा ये सिर्फ एक ढोंग के अलावा कुछ भी नहीं है...✍️अनुजा कौशिक 


नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...