ऐसा क्यों है जब हम किन्हीं खास मुद्दों ( जिन पर बात किया जाना बहुत ज़रूरी है) पर बात करने की कोशिश करते हैँ तब गलतफहमियां बढ़ जाती हैँ , नाराज़गी बढ़ जाती हैँ या फिर दुश्मनी हो जाती है। बातचीत ही बंद हो जाती हैँ? हम शिक्षित होने के बावज़ूद ना ठीक से भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैँ, ना सुन पाते हैँ और ना ही समझ पाते हैँ। बस ऐसे ही शुरुआत होती है रिश्तों में समझौतों की। जो लोग महत्वपूर्ण होते हैँ उन्हें छोड़ नहीं सकते लेकिन समझौता करके खुश रहने की कोशिश , रिश्तों को बचाने की कोशिश की जाती है। हमारे रिश्ते इतने खोखले क्यों हैँ ? हम एक दूसरे के लिए विश्वसनीय इंसान क्यों नहीं बन पाते कि एक दूसरे से पूछा जाए तो हम ठीक वैसा ही बताएं जैसा हम महसूस करते हैँ। झूठ बोलने की ज़रूरत ही ना पड़े, खामोश रहने की ज़रूरत ही ना पड़े। ✍️ अनुजा कौशिक