Anugoonz

Wednesday, September 30, 2020

क्या बच्चों में पनपती आपराधिक प्रवृति के लिये पेरेंटिंग ज़िम्मेदार नहीं ?


 समाज का घिनौना चेहरा देखकर क्रोध कम पर ग्लानि ज्यादा होती है..कब महसूस करेंगी स्त्रियाँ खुद को सुरक्षित पुरुषों के साथ? क्यों डर लगता है..क्यों घबराहट होती है? कौन ज़िम्मेदार है इस सबके लिये? बेटा तो मेरा भी है..पर इतना तो मुझे दृढ़ विश्वास है अपने संस्कारों पर कि कोई भी लड़की उसके साथ लड़की होने के भय से मुक्त होकर बात कर पायेगी..वो समानता के अधिकार में विश्वास रखता है जानते हैं क्यों? क्योंकि हमने उसे संस्कार ही ऐसे दिए हैं..उचित समय पर उसकी काउंसलिंग की है.. 

मेरे विचार से अगर कोई भी बच्चा बड़ा होकर किसी भी तरह का अपराधी बनता है तो उसमें पेरेंटिंग का बहुत बड़ा रॉल होता है..क्या आप सभी को नहीं लगता कि हमारे समाज में अधिकतर पेरेंट्स जाने अनजाने लड़के लड़की की पेरेंटिंग काफी हद तक अलग तरीके से करते हैं..जानती हूँ बहुत से कहेंगें आजकल ऐसा नहीं है..परन्तु ये स्पष्ट दिखता है जब कोई लड़का राह चलती लड़की को देखकर फब्तियां कसता है..पीछा करता है..बलात्कार तो आम है..घरेलू हिंसा कहाँ खत्म हुई हैं? कितने किस्से कहानियों में..हमारे लोक गीतों में क्या एक स्त्री को हमेशा कमज़ोर नहीं दर्शाया गया है..पुरुष को *मर्द* कहकर क्या उसे सर्वोपरि नहीं बनाया गया है और क्यों कहा गया स्त्री को अबला..? सब ख़राब पेरेंटिंग के कारण होता है..क़ानून तो सिर्फ डर पैदा कर सकता है..बलात्कार जैसी घिनौनी वारदातों का हल तो घर से होकर निकलता है.. भविष्य में ऐसा ना हो इसके लिये हमें अपने अपने घरों से शुरुआत करनी होगी.. हमारे बच्चों के रॉल मॉडल्स भी हम ही होते है..वे हमें देखकर ही सीखते हैं..

पेरेंट्स जैसा पेड़ चाहते हैं वैसा ही तो संस्कार का बीज़ डालना पड़ेगा ना..*बोये पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होय*..समस्या हमारी पारिवारिक जड़ों में हैं..दोषी तो फिर बच्चे बनेंगे ही ना..क्यों नहीं ध्यान रखते माता पिता अपने बच्चे का बचपन से ही कि उनके दोस्त कौन हैं.. वे कहाँ जाते हैं.. क्या करते हैं.. क्या देखते हैं..पढ़ते हैं..कैसा व्यवहार करते हैं..और बड़े होकर जब गलत काम करते हैं तो फिर पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगता..मुझे लगता है इन बलात्कार जैसी भयानक घटनाओं को समाप्त करने के लिये समाज की जड़ों को मज़बूत बनाने के लिये काम करना होगा और हम सभी को भी चाहिये हम सिर्फ अपने बारे में ना सोचकर अपने आसपास के माहौल के लिये ज़िम्मेदार बनें..हम अपनी लड़कियों को भी आत्मरक्षा के गुर सिखाएं..कानून तो अपना काम करेगा ही..बहुत कुछ है लिखने को इस बारे में..फिर कभी ज़रूर लिखूँगी..अभी शायद पोस्ट बहुत बड़ी हो जायेगी..अपने विचार ज़रूर रखें.. आप क्या सोचते हैं?

Sunday, September 27, 2020

बेटियां और संस्कार


 बेटी एक ईश्वर का प्यारा सा तोहफा..घर की चहकती चिड़िया, घर की रौनक़, माँ की प्यारी सहेली, पिता की परी और भैया की सच्ची दोस्त..हम मनाते हैं आज के दिन बिटिया दिवस परंतु क्या हम सब जानते हैं इसका महत्व? जानते हैं आप ईश्वर बेटी क्यों देता है? अरे ! वो इसलिए ताकि हम सभ्यता सीख सकें.. हम अपने घर में अच्छे संस्कारों की नींव डाल सकें..हम अपने व्यवहार में शालीनता और सज्जनता का समन्वय कर सकें..एक स्त्री एक बेटी को पाल पोसकर बड़ा करती है तो वो ये भी समझ रखें कि दूसरे की बेटी भी उसी तरह नाज़ से पली बढ़ी है..पुरुष अपने घर में अपनी छोटी सी परी को बचपन की अठखेलियों से लेकर जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते देखकर स्वयं के विचारों में संतुलन बनाना सीखें..किसी भी अन्य की बेटी या स्त्री के लिये कोई भी माँ -बहन से संबंधित या कोई और अपशब्द कहने लिखने से पहले ये ध्यान रखें कि अगर उनकी बेटी या घर की किसी महिला सदस्य के लिये ऐसे शब्द प्रयोग किये जाएँ तो कैसा अनुभव होगा..किसी और की बेटी की तरफ गलत नज़र से देखने से पहले ध्यान रहें कि उसकी खुद की बेटी की शारीरिक संरचना भी ठीक वैसी ही है..जो व्यवहार हम खुद के साथ या अपने किसी अन्य परिवार के सदस्य के साथ नहीं देखना चाहते वैसा व्यवहार हम किसी और के साथ भी ना करें...बेटियां नहीं आती हैं सिर्फ पल बढ़कर..लिख पढ़कर पराई हो जाने के लिये.. वो तो आती हैं हमेँ सच्चाई, प्रेम, सहयोग, त्याग और सहनशीलता सिखाने के लिये..पर फिर भी न जाने क्यों ये समाज दोगला है..खुद की बेटी के लिये सब कुछ सभ्य और संस्कारी वातावरण चाहिये और दूसरों की बेटी के लिये अपशब्द या गलत व्यवहार करने से नहीं चूकते बहुत से लोग..बिटिया दिवस का उद्देश्य सिर्फ बेटी के साथ तस्वीरें शेयर करना नहीं है बल्कि सम्पूर्ण नारी जाति के लिये अपने भीतर सम्मान भर लेना है...एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जिसमें एक बेटी सुरक्षित रह सके..अपने बेटों को भी अच्छे संस्कार देने हैं ताकि जब वो परिपक्व अवस्था में पहुंचे तो उनके मन में समानता का एहसास हो ना कि ऊँच नीच की तुच्छ भावना का.. यही कहना चाहती हूँ आईये इस बिटिया दिवस हम सभी प्रण लें कि अपने बेटे बेटियों दोनों को एक सम्मानित और संतुलित जीवन देने का प्रयास करेंगे.. ताकि वे बड़े होकर चरित्रवान हों और स्वस्थ और शालीन समाज के भागीदार हों..आपकी क्या राय है इस बारे में?  अपने विचारों ज़रूर साझा करें... 

Thursday, September 10, 2020

ख़ामोशी बनाम आत्महत्या

 खामोशी भी एक तरह की आत्महत्या ही है..दबी हुई भावनाएं अक्सर घुटन पैदा करती है..ना जाने कितनी बार खुद को दिलासा देता है इंसान..ना जाने कितनी बार अंदर ही अंदर मरता है..ना जाने कितनी ही बार खुद को हिम्मत देकर खड़ा करता है..खुद से प्यार करने की कोशिश करता है..देखता है अपने चारों ओर हर इंसान में एक हमदर्द..लेकिन पाता है पहले से भी ज्यादा खुद को अकेला..मानसिक दबाव बढ़ता जाता है और फिर ख़ामोशी उसे अपनी ओर खींचने लगती है..आत्महत्या तो इंसान बाद में करता है..उसकी हत्या तो अंदर से पहले ही हो चुकी होती है.. कितने सारे अपने..सोशल मीडिया पर कितने सारे दोस्त..कितना शोर आसपास और फिर भी इंसान खामोश..यही विडंबना है आज के समय की..किसी के पास समय नहीं किसी के पास बैठने का..बात करने का..सब मोबाइल के टच में व्यस्त है पर वास्तव में टच में कोई नहीं..मानवीय संवेदनाएं तो जैसे कहीं खो सी गयी है..कोई अब किसी का ख्याल नहीं रखता..दयाभाव नहीं रखता..इंसान बस मशीन बन गया है..दौड़ता जा रहा है..भागता जा रहा है पता नहीं कहाँ..अंतिम सत्य तो मन की शांति है और वो एक स्वस्थ समाज में मिलेगी और स्वस्थ समाज का निर्माण स्वस्थ और ऊँची मानसिकता से ही सम्भव है..हम सभी एक दूसरे से जुड़े है और एक दूसरे का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य भी है और नैतिक ज़िम्मेदारी भी..मानवीय संवेदनाओं को बनाये रखने की सख्त ज़रुरत है अन्यथा  भावी समाज की स्थिति तो और भी भयावह होगी..आप क्या सोचते है इस बारे में  ?? ✍️✍️अनुजा 


Wednesday, September 9, 2020

Follow your own Ideologies..


 What is going on in our country?🙄So much unrest and conflicts..thats too because of these news channels & newspapers..its ridiculous..Journalism is at its peak of downfall..I don't follow any party, person, any actor or actress blindly..I trust myself and my ideologies and thats what expected from well educated intelligent people..They should be able to make their own decisions 😎...Use your own mind before trusting or following anyone..Praise for what is Good & legit and Raise your voice against Evils & Hypocrites..For a peaceful society we'll have to stop giving too much attention to these news channels first...Isn't it? ✍️Anuja

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...