Anugoonz

Wednesday, May 27, 2020

कोरोना : महामारी या देवदूत

स्वप्न में कोरोना से मुलाक़ात हुई.. मैंने पूछा..
कोरोना..कोरोना ओ कोरोना !!
क्या सचमुच तुम एक विनाश हो, महामारी हो?
एक दानव हो या अभिशाप हो?
या हो कोई देवदूत या हो कोई चेतावनी
बताओ तो कौन हो तुम?

कोरोना ने उत्तर दिया..
हे मानव..महामारी तो तुमने समझा
मैं तो एक देवदूत हूँ
लेकर आया हूँ देव-सन्देश
आना पड़ा मुझे याद दिलाने
कि तुम नहीं हो इस पृथ्वी के मालिक
भूल बैठे हो प्रेम त्याग समर्पण के संस्कार
हावी हुआ इस दुनियाँ पर अब तुम्हारा अहंकार
दया भाव तुमने खत्म किया ना फिर पश्चाताप किया
दीन दुखियों..पशु पक्षियों पर तुमने अत्याचार किया
पेड़ काटकर वन जलाकर प्रकृति पर खूब अन्याय किया
कर्तव्य भूले मर्यादा भूले..तुमने व्याभिचार किया
आया हूँ मैं एहसास दिलाने हे मानव !!
तुम ईश्वर की संतान हो..इस दुनियां की शान हो
क्यों भूले हो कर्तव्य पथ को..अपने अंदर के इंसान को
बैठकर अब लॉकडाउन में घर पर
खुद की ज़रा पहचान करो
चला जाऊंगा खुद ही इस धरा से
बस पहले एक वचन भरो
सादा भोजन..सादा जीवन और होंगे उच्च विचार
यही रहे बस अब तुम्हारे जीवन का आधार
स्वच्छ रहे प्रकृति.. निर्मल रहें संस्कार
हे मानव! मैं महामारी नहीं देवदूत हूँ
देने आया हूँ देव सन्देश
डरो ना मुझसे !!
करो साधना घर पर रहकर
अपनी भूलों का पश्चाताप करो
प्रेम, क्षमा और दया भाव को भीतर आत्मसात करो
✍️ अनुजा कौशिक

Tuesday, May 26, 2020

*हार कहाँ हमने मानी है*

रुलाती है जिंदगी हंसाती भी है 
जिंदगी के संघर्षों से छलनी भी है मन 
माना दुखों की आँधियाँ तड़पाती हैं बहुत 
पर हार कहाँ हमने मानी है 
पार पाएंगे हर मुश्किल से ये अब मन में ठानी है 
माना उम्मीदें टूटी हैं कुछ
राहों में हैं कांटे भी बहुत 
पीड़ा से आहत ये अंतरर्मन 
पर मुस्कुराहट खोने ना देनी है 
हार कहाँ हमने मानी है 
हम चलते जाएँ..गाते जाएँ 
स्वयं से द्वंद्व भी करते जाएँ 
मंज़िल अब कहाँ दूर है 
जख्म मिलेंगे दर्द मिलेगा 
यही दुनियां का दस्तूर है 
पर मिल जायेगी मंज़िल 
हार कहाँ हमने मानी है 
पार पाएंगे हर मुश्किल से ये अब मन में ठानी है 
ये जीवन बड़ा अनिश्चित है यारों 
हार मिलेगी या जीत मिलेगी 
तुम देखो ना पाँव के छालों को 
बढ़ते जाओ.. हँसते जाओ 
सहते जाओ..प्रेम गंगा बहाते जाओ 
ना हारें हम खुद से..इस संकट से 
ढल जाएगा ये अंधकार भी 
हार कहाँ हमने मानी है 

*दोस्ती*

*महाभारत में दो दोस्तियों की कथा का खूब सुन्दर वर्णन है। पूरा पढ़ें*
 आज इतने सालो बाद भी उस समय की दोस्ती दोस्ती के सही मायने बताती है..कृष्ण और अर्जुन के बीच की दोस्ती और दुर्योधन और कर्ण के बीच की दोस्ती। इन दोनों दोस्ती में दोस्त एक दूसरे की जान थे..एक दूसरे के लिए कुछ भी करने तैयार थे पर ऎसी क्या बात थी जो युद्धकला में अर्जुन से ज्यादा पारंगत कर्ण दोस्ती में सबकुछ हार गए और अर्जुन को दोस्ती में पूरा जहाँ मिल गया..कुछ तो बात थी..क्या फर्क था इन दोनों दोस्तियों  में....
*सिर्फ फर्क था दोस्ती के भाव में उसके बीज में जैसे भाव थे वैसा बीज पड़ा था वैसा ही फल मिलना था*  कर्ण ने बचपन से ही सबसे श्रेष्ठ धनुर्धर बनने की महत्वकांक्षा पाल रखी थी..उसी महत्वकांक्षा को पूरी करने के लिए उसकी दोस्ती दुर्योधन से हुई..यहाँ उसने ये भी नहीं देखा की जिसे वो दोस्त बना रहा है वो कैसा है ?  और दुर्योधन के अहसान के तले दब गया और अपने दोस्त को उसकी सभी अच्छी हो या बुरी बातो में साथ देने लगा ..यहाँ उसने दोस्त को धोखा नहीं दिया पर गलत व्यक्ति से दोस्ती की तो जीवन की राह भी गलत दिशा में चली गयी .......

अर्जुन और कृष्ण तो दिल से जुड़े थे इस दोस्ती के भाव में बेहद पवित्रता थी..दोस्त के सिवाय एक दूसरे को इस दोस्ती में कुछ चाहिए भी नहीं था..मतलब दोस्ती जो कि सच्चे प्रेम का एक रूप है उसमे पूर्ण समर्पण है । 
  
इस महाभारत की कथा में कर्ण और अर्जुन के बीच का युद्ध एक विशेष प्रसंग है...कर्ण और अर्जुन एक ही माता के पुत्र..कर्ण को पता है पर अर्जुन को नहीं..कर्ण  जानता है कि दुर्योधन का रास्ता गलत है अधर्म है वहाँ...तब भी उसका ही साथ देना उसकी मजबूरी होना ये बताता है कि  गलत एहसान लेना इंसान को मजबूर कर देता है फिर वो सही रास्ते आ ही नहीं पाता..

कृष्ण अर्जुन के सच्चे दोस्त, सच्चे सलाहकार अर्जुन की रक्षा के लिए पूरी तरह से सतर्क...पर दुर्योधन  जिसको सिर्फ खुद की फिक्र..खुद के स्वार्थ की लड़ाई में अपनी खुद की रक्षा के लिए अपने दोस्त का साथ माँगना  यहाँ यही बताता है की स्वार्थी लोगो से दोस्ती नहीं करना उनसे दूर होना चाहिए...दोस्ती को नहीं तो लोगो के दिल के भाव को महत्त्व देना चाहिए.....

दुर्योधन ने धोखे से पांडवो के मामा शल्य को अपने पक्ष में कर के कर्ण का सारथी बना दिया तो शल्य ने भी अपने बोलों से हर समय कर्ण के मनोबल को कमजोर किया यहाँ तक कि कर्ण ने शल्य को सारथी बनाने से इंकार किया दुर्योधन ने मित्र की मनोदशा न समझते हुए शल्य को ही कर्ण का सारथी बनाया..कर्ण की हार का ये भी एक मुख्य कारण है..इससे यही पता चलता है कि जो मित्र आपकी मनोदशा न समझ सके और आप को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करे वे मित्र होने लायक नहीं.. 

अब कर्ण और अर्जुन के बीच में जब युद्ध शुरू हुआ तो अर्जुन ने कहा हे माधव!! कर्ण पराक्रमी तो है पर उसके सारथि स्वयं मामा शल्य है सारथि कला में वो बेहद निपुण है कही युद्ध में मै पिछड़ न जाऊँ तो कृष्ण ने अर्जुन का मनोबल बढ़ाते हुए कहा हे पार्थ !!  पाशुपतास्त्र के रूप में स्वयं शिव का जिस के पास आशीर्वाद हो वो युद्ध में कभी हार ही नहीं सकता  तुम युद्ध निश्चित जितने वाले हो ..... 
 इस से यही पता चलता है अगर मनोबल बढ़ाने वाला सिर्फ एक सच्चा दोस्त साथ में हो तो कितनी भी मुश्किल  परिस्थितियाँ हों उनमें से इंसान निकल जाता है..

और वहाँ जब अर्जुन का बाण चलता तो शल्य बोलते कर्ण वो देखो विद्युत की गति से चलने वाले अर्जुन के बाण तुम्हारे पास इस बाण से बचने का कोई उपाय नहीं  और कर्ण का मनोबल कमजोर हो जाता। 

इस लड़ाई में एक बात और थी अर्जुन ने खुद के स्वार्थ के लिए न लड़ते हुए सबके कल्याण के लिए युद्ध किया तो कर्ण ने अपनी महत्वकांक्षा को पूरी करने के लिए अपना सबकुछ पर दांव पर लगा दिया इसलिए कृष्ण और हनुमान जी के रूप में दैवीय शक्तिया अर्जुन के साथ थी  इससे भी यही पता चलता है की स्वार्थ से ऊपर उठकर परमार्थ के लिए धर्म के लिए कार्य किया जाए तो दैवीय शक्तियाँ  हमेशा आप के साथ रहेगी तब आपकी जीत  निश्चित है..
दोस्ती तो हर कोई करता है  पर एक अच्छे से इंसान से दोस्ती और प्रेम करना आप की सबसे कीमती चीज हो जाती है 
तो चाहे कुछ भी हो जाये दोस्त बनाओ तो कृष्ण जैसा  और दोस्ती निभाओ तो भी कृष्ण जैसी।

Monday, May 25, 2020

मैं सरल हो जाना चाहती हूँ

ना ही कुछ बदलना चाहती हूं
ना ही अफ़सोस करना चाहती हूं
बस जो रिश्ता जैसा है उसे
वैसा ही निभाना चाहती हूं
मैं सरल हो जाना चाहती हूं
निस्वार्थ हो जाना चाहती हूं
हर लम्हा कुछ न कुछ संजोये है खुद में
बस जी भर कर जीना चाहती हूं
रिश्ते बनते हैं निभाने के लिये
बस जो रिश्ता जैसा है उसे
वैसा ही निभाना चाहती हूं
यादें कभी कभी बहुत तड़पाती हैं
उन्हें अपनी आदत बनाना चाहती हूं
नहीं कुछ भी भूलना चाहती हूं
प्रेमभाव,सेवाभाव या हो कर्तव्य
बस निष्पाप निभाना चाहती हूं
मन के अंधेरे खो देना चाहती हूं
बस खुलकर हँसना चाहती हूं
खुलकर रो देना चाहती हूं
भावनायें नहीं होती हैं दबाने के लिये
मैं बेझिझक व्यक्त कर जाना चाहती हूं
छल कपट स्वार्थ को दूर भगाना चाहती हूं
मैं सरल हो जाना चाहती हूं
निस्वार्थ हो जाना चाहती हूं
नहीं समझे जब कोई मन के ज़ज़्बात
मैं खामोश हो जाना चाहती हूं
मैं खुद को ही समझना चाहती हूं
मुस्कुराते हुए बस जीवन धारा के संग
यूं ही बह जाना चाहती हूँ
मैं सरल हो जाना चाहती हूं
निस्वार्थ हो जाना चाहती हूं

✍️अनुजा कौशिक 

Sunday, May 24, 2020

प्रेम क्या है

प्रेम क्या है 
राधा ने श्री कृष्ण से पूछा 
कृष्ण मुस्कुराये 
बोले, हे प्रिय राधे  
है प्रेम से ही जीवन
जीवन ही तो प्रेम है 
प्रेम स्वार्थ नहीं परमार्थ है 
अभिमान नहीं स्वाभिमान है 
घृणा में नहीं करुणा में है 
अहंकार नहीं संस्कार है 
आसक्ति नहीं वो भक्ति है 
अपमान नहीं सम्मान है 
प्रेम सत्य है..निर्मल है 
वो खुशबू है..आज़ादी है 
क्षमा है, हे राधे !! वो तो विश्वास है 
त्याग है समर्पण है 
एक खूबसूरत सोच है 
तन का नहीं मन से जुड़ाव है 
ईश प्राप्ति का प्रथम पड़ाव है 
सब दोषों से परे..दिव्य है
प्रेम आत्मिक, है आलौकिक 
प्रेम अहं का है विसर्जन
प्रेम तो स्वयं ईश्वर का प्रतिरूप है 

अनुजा कौशिक 
सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखिका 
देहरादून (उत्तराखंड)

Saturday, May 23, 2020

आत्मा का रिश्ता

"आलू ले लो.. प्याज़ ले लो " की आवाज़ इतनी तेज़ बारिश में भी सुनाई दे रही थी..सर्दी का मौसम था. जैसे ही छाता लेकर बाहर आई तो देखा कि एक बूढ़े बाबा ठण्ड में काँपते हुए, बरसाती पहने आलू प्याज़ की रेहड़ी को धकेल रहे हैं..

" बेटा क्या चाहिए", बूढ़े बाबा ने पूछा

मैंने उत्तर दिया, "बाबा चाहियें तो प्याज़ लेकिन पहले आप अंदर आ जाइये चाय पिलाते हैं आपको..बहुत सर्दी है"

हिचकिचाए तो सही लेकिन एक दो बार बोलने पर थोड़ा सामान्य होकर अंदर चले आये..चाय पीते हुए खूब घर परिवार की बातें कीं..अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताया..फिर प्याज़ तौलकर दिए हमें और थोड़ी बारिश रुकने पर आशीर्वाद देते हुए चले गए.

अब इसके बाद बाबा जब भी सब्ज़ी लेकर आते तो ज़ोर ज़ोर से "आलू ले लो प्याज़ ले लो" की आवाज़ लगाते..जब हम बाहर आते तो खूब मस्तमौला अंदाज़ से प्रणाम करते और बोलते दिल खुश हो जाता है आप लोगों से बात करके..हमारे घर से कोई बाहर नहीं निकलता तो आस पड़ोस में हमारे बारे में पूछकर चले जाते.

बच्चों की परीक्षाएं शुरू हो चुकीं थी तो घर से बहुत कम बाहर निकलना होता था..पूरा दिन घर के काम और बच्चों को पढ़ाने में ही बीत जाता था.. कुछ दिनों तक ध्यान ही नहीं गया कि बाबा आते हैं और आवाज़ लगाकर चले जाते हैं..जब चार पांच दिन ऐसे ही बीत गए तो एक दिन हमारे घर की घंटी बजी तो मैं बाहर निकली..

"बाबा नमस्ते" मैंने बाबा से कहा

"बेटा आजकल बाहर नहीं निकलते..रोज़ आवाज़ देकर चला जाता हूँ और बाऊ जी कहाँ हैं..बहुत दिन हो गए देखे हुए", बूढ़े बाबा ने कहा

मैंने उत्तर दिया, " बाबा बाऊ जी तो घर पर नहीं हैं और मैं बच्चों की परीक्षाओं के चलते व्यस्त हूँ..आलू प्याज़ की भी ज़रुरत नहीं थी तो बाहर नहीं निकली"

इसके बाद जो बाबा ने कहा वो बहुत भावुक कर देने वाले शब्द थे..मेरी आँखें छलक उठी थीं..मैं निःशब्द थी.

बाबा ने कहा, "बेटा मैं आपको सब्ज़ी बेचने नहीं आता हूँ.. ज़रूरत हो तो ले सकते हो..परन्तु मैं ज़ोर ज़ोर से इसलिए आवाज़ लगाता हूँ कि आप लोगों को देख सकूँ..नमस्ते कर सकूँ..कुछ अपना सुख दुख साझा कर सकूँ.."

आंखों में एक अज़ीब सी चमक के साथ बाबा बोले, " आत्मा का रिश्ता है आप लोगों से बस..प्रेम है दिल में..बस आप लोगों को देखे बिना बेचैन सा हो जाता हूँ..आप लोगों से बात करके मन को तसल्ली सी होती है..अपनापन सा महसूस होता है".

उस दिन मुझे एहसास हो गया था कि दुनियां में सब कुछ है बस निस्वार्थ प्रेम की कमी है..एक दूसरे को अच्छा महसूस कराना और खुशी देना इंसान का सर्वप्रथम कर्तव्य है.. इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं..

वो बूढ़े बाबा आज भी सब्ज़ी बेचने हमारी कॉलोनी में आते हैं और हमें जब भी समय मिलता है उनसे ज़रूर बात करते हैं..चाय नाश्ता कराते हैं और वो आशीर्वाद देते हुए चले जाते हैं.

आत्मा का रिश्ता जो है उनसे..

✍️ अनुजा कौशिक✍️

ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है

ये जीवन भी अद्भुत है
अनिश्चित है 
कल जिसके आने की ख़ुशी में 
नाचे थे गाये थे और कहकहे लगाए थे 
क्या पता था..वे नूतन वर्ष की खुशियाँ 
मिट्टी में मिल जाएंगी..
एक वायरस आएगा और..
मौत का तांडव मचाएगा 
डर होगा.. बेबसी होगी 
अपने ही घर में कैदी होंगे 
समय ही समय होगा 
मन अपनों से मिलने को तरसेगा 
मौत का सीजन है मेरे अपनों 
वक्त मिले तो बातचीत करते रहना
कभी एक मेसेज कर देना 
वीडियो कॉल से मुख भी दिखा देना 
करते रहना शेयर कैसे बिताये लम्हे 
कर लेना सुख दुख की दो बात 
कभी हंसा देना..ढाढ़स बंधा देना 
सुन लेना एक दूजे के मन की बात 
अहसास कर पाएँ कुछ ज़ज़्बात 
मुश्किल दौर है बीत जाएगा 
आने वाला कल खुशियाँ भी लाएगा 
घर पर ही रहना सुरक्षित रहना 
मन को कभी मायूस ना करना 
ज़िंदा रहने का ज़ज़्बा कायम रखना 
क्योंकि जिंदगी ज़िंदादिली का नाम है 
✍️ अनुजा कौशिक ✍️

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...