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Monday, August 30, 2021

जय श्री कृष्ण ( श्री कृष्ण जन्माष्टमी)

 


श्री कृष्ण को पूजते हैँ और मन में अहंकार रखते हैँ। शक और स्वार्थ रखते हैँ। जो प्रेम और विश्वास नहीं कर सकता उसने कुछ नहीं सीखा श्री कृष्ण के जीवन से। प्रेम आत्मा का रिश्ता होता है। मन में श्रद्धा नहीं तो प्रेम भी नहीं। श्री कृष्ण अपने हर किरदार में सच्चे और ईमानदार थे। हमने उनके सामने सिर्फ दिया बाती की..दो चार भजन गाये या उनके जीवन से कुछ सीखने की कोशिश भी की ये हमारी सोच पर निर्भर करता है। श्री कृष्ण जी कहते हैँ हमारी हर सोच , हमारा हर बोल, हमारा हर कृत्य हमारा कर्म है और कर्म का फल उस बछड़े की तरह है जो सैंकड़ों गायों में भी अपनी माँ को ढूंढ लेता है। अत: हम जिस भी किरदार में हों सच्चे और ईमानदार हों। तभी जन्माष्टमी की सार्थकता है। नहीं तो सिर्फ एक मूर्ति पूजा और अन्धविश्वास है। हम स्वार्थी नहीं एक दूसरे के सच्चे मार्गदर्शक बनें, सारथी बनें। आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ । ✍️ अनुजा कौशिक 



Sunday, August 22, 2021

रक्षाबंधन पर विशेष


फेसबुक की एक पोस्ट पर लिखा था कि आत्मा को ईश्वरीय मर्यादाओं में बांधकर रखना ही सच्ची सुरक्षा है और हाथ पर राखी बाँधना उन्हीं मर्यादाओं के पालन करने की शपथ लेने का यादगार है। मन को छू गयी ये पंक्तियां कि हम सभी में ईश्वर का वास है। हम सभी एक दूसरे में ईश्वर को देखें। प्यार को पैसे से ना तोलें। जब तक इस पृथ्वी पर ईश्वर के दिये गये कार्यों को करने की अवधि समाप्त नहीं हो जाती हम खुद को तराशते रहें। हम महसूस करें कि हम सभी ईश्वर के भेजे गये सिर्फ प्यादे भर हैँ। ये रिश्ते नाते तो सिर्फ यहाँ जीवन को आसान बनाने के लिए बनाये गये हैँ और हम मुश्किल् बनाये जाते हैँ। हर त्योहार का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ खुद को प्रेम से भर लेना हैँ। यही ईश्वर का संदेश है। 

और एक बात थोड़ी सी हटकर...एक सांसारिक प्राणी होते हुए नर और मादा का स्वरूप निभाने का अवसर जो ईश्वर् ने हमें दिया है उस पर खरा उतरना हमारा प्रथम कर्तव्य है। मै अक्सर देखती हूँ ये कहते हुए कि हमारे समाज में एक नारी और एक पुरुष कभी सच्चे दोस्त नहीं हो सकते। अक्सर कहते देखा जा सकता है वो तो मेरी बहन जैसी है और वो तो मेरे भाई जैसा है। पारिवारिक रिश्तों में भाई बहन ठीक है। लेकिन सभी को भाई बहन बना लिया जाए ये हमेशा सम्भव नहीं। क्या एक स्त्री या पुरुष को सम्मान देने के लिए उसे भाई या बहन की उपाधि देना ज़रूरी होता है ? मुझे लगता है हमें इस सोच से थोड़ा ऊपर उठने की ज़रूरत है। किसी औरत का सम्मान उसे दोस्त मानकर भी किया जा सकता है। हम अपने पुत्रों पुत्रियों को ऐसी शिक्षा शुरु से ही क्यों नहीं देते कि वे एक दूसरे की भावनाओं को सम्मान देना सीखें। हमें अपनी रूढ़िवादी सोच को बदलने की ज़रूरत है। नहीं तो समाज में वही सब होता रहेगा जो सदियों से होता आया है।अपनी बहन जैसी इज़्ज़त दूसरों की बहन को भी देने के लिए सोच और नज़रिया
तो बदलना ही पड़ेगा। अपने शब्दकोष से मां बहन की गालियों को हमेशा के लिए निकाल देना ही एक औरत का सच्चा सम्मान है। सोच बदलेंगी तो ही रक्षाबंधन की सार्थकता है। 
अपने विचार ज़रूर व्यक्त कीजियेगा। आप क्या सोचते हैँ इस बारे में। ✍️ अनुजा कौशिक 
 

Thursday, August 12, 2021

अंतर्राष्ट्रीय युवा दिवस ( International Youth Day)

 


मेरे युवा होते हुए बच्चों का पालन पोषण करते हुए महसूस होता है कि आज के युवा में बहुत काबिलियत् है। अगर सही मार्गदर्शन दिया जाए तो वो हमारी पीढ़ी की अपेक्षा ज्यादा जागरूक और प्रोत्साहित है। उन्हें आभास है कि उन्हें जीवन में क्या करना है। क्या पढ़ना है, उन्हें समय का बेहतर प्रबंधन करना आता है।

लेकिन समाज में कुछ युवाओं को जब देखती हूँ, रास्ते से भटकते हुए, नशावृति का शिकार होते हुए, गुमराह होते हुए और कभी कभी आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कदम उठाते देखते हुए। तब बड़ा मन दुखी होता है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने युवा को सही मार्गदर्शन नहीं दे पा रहे ? कहीं हमारी अपेक्षाएँ कुछ ज्यादा तो नहीं? मुझे लगता है हम अपने बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ व्यवहारिक ज्ञान देने में थोड़ा सा चूक रहे हैँ। 

हमारा युवा सीख ही नहीं पा रहा कैसे ज़िन्दगी को बेहतर और साधारण ढंग से जीया जा सकता है..हमारी शिक्षा युवा वर्ग को सिर्फ पैसा कमाने के..झूठी शान के अंधे कुएँ में धकेल रही है.. संस्कार और आदर्श तो जैसे धीरे धीरे पाश्चात्य संस्कृति की भेंट चढ़ते चले जा रहें हैँ.. सहनशक्ति और धैर्य जैसे गुण भी कम होते जा रहें हैँ..जीवन की थोड़ी सी विकट स्थिति देखते ही हमारा युवा आत्महत्या जैसा भयानक कदम उठाने को जैसे तत्पर ही है..जिस उम्र में हमारा युवा समाज और देश के प्रति ज़िम्मेदार होना चाहिये उस उम्र में वह अवसाद और मानसिक तनाव के कारण गुमराह हो रहा है..जीवन में जो भी घटित  होता है हम उन्हें उनके पीछे छिपे उद्देश्य को सिखा पाने में क्यों असक्षम हैँ? जीवन का असली उद्देश्य तो अंतर्मन को जागृत करके अपने परिवार, समाज, देश और इस संसार के सभी प्राणियों के लिये सद्भावना रखना है..जब तक जीवन है तब तक इस ब्रह्माण्ड में अपनी सकारात्मक ऊर्जा फैलाना और दूसरों के सुख दुख में सहयोग करना ही इस जीवन की सार्थकता है..

 मेरी राय में क्यों नहीं हम अपनी युवा पीढ़ी को समय रहते अपने पवित्र ग्रंथों जैसे महाभारत, भगवद्गीता और रामायण पढ़ने के लिये प्रेरित करते..जिनमें जीवन को संतुलित ढंग से जीने के सारे सुझाव उपलब्ध हैँ..क्यों नहीं प्रेरित करते उन्हें महान लोगों की जीवनियाँ पढ़ने के लिये जिन्होने युवा होते हुए समाज और देश के लिये बहुत बलिदान दिए..त्याग किया..मेरा अनुभव है ये कि अगर बच्चों का दोस्त बनकर उन्हें यह सब सिखाया जाए तो यह सच में काम करता है..सही मार्गदर्शन बहुत ज़रूरी है..

आप क्या सोचते हैँ आज का युवा कैसा होना चाहिए ?✍️ अनुजा कौशिक 





Wednesday, August 11, 2021

पाश्चात्य बनाम भारतीय संस्कृति और हमारे बच्चे




हमारी हिंदी फ़िल्में हमारे समाज का आईना होती हैँ। पुरानी या बीच के समय की फिल्मो में अक्सर किसी इंसान की बिगड़ैल प्रकृति को दिखाने के लिए अकसर तेज़ अंग्रेजी गानों पर डांस करते हुए दिखाया जाता था और हम अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व महसूस करते थे। अंग्रेजी हमने भी सीखी थी पर अपनी मातृभाषा हिंदी का सम्मान करना कभी नहीं छोड़ा। हम जब सुबह सोकर उठते थे तो गायत्री मंत्र का अलार्म बजता था और हम शान्ति महसूस करते हुए ईश्वर को प्रणाम करते हुए बिस्तर से उठते थे। मंदिरों में सुंदर भजनों की आवाज़ सुनकर सवेरा शुभ हो जाता था। 

और एक अब है। बच्चों ने सीखा है हिंदी में गिनती गिनना और हमने संस्कार भी देने की कोशिश की है अपने जैसे क्योंकि हमें पता है भविष्य में शांति पाने के लिए लौटकर तो यहीं आना होगा। पर फिलहाल यही चिंतन का विषय है हमारे बच्चे आखिर कहाँ दौड़े जा रहे हैँ। सुबह सुबह जब अलार्म बजता है तो एनिमे ( Anime) या पाश्चात्य संगीत का स्वर बजता है। बच्चे एनिमे ( कॉमिक्स का डिजिटल रूप में विकसित रूप) देखने के लिए पागल हुए जाते हैँ। मानती हूँ पढ़ाई में आजकल के बच्चे कुशाग्र बुद्धि के हैँ पर मुझे लगता है कि कहीं ना कहीं ये सब चीज़े हमारे बच्चों में चिड़चिड़ाहट वाला व्यवहार पैदा कर रही हैँ। स्टेटस पर भी कोई भूत जैसे दिखने वाले एनिमे करैक्टर लगे होते हैँ। अंग्रेजी गानो के सारे सिंगर्स के नाम पता हैँ पर हिंदी में कोई रूचि नहीं। अंग्रेजी में गिनती आती है पर हिंदीं में गिनती समझ आती नहीं। विदेशी भाषाओं के तेज़ म्यूजिक पर थिरकते कदम और झूमती गर्दन और हिंदी की तरफ कोई रूझान नहीं। 

हम कहते हैँ फक्र से हम हिंदुस्तानी हैँ पर क्या हमारे बच्चे रहे अब हिंदुस्तानी हैँ ? किसका है कुसूर.. कौन है इन बच्चों का अपराधी ? खुद हमारी उम्मीदें या बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धाएं ? अंग्रेजी में गिटर् पीटर बोलना माना अच्छा है पर हिंदी का अपमान करना क्या ज़रूरी है ? अंग्रेजी बोलने में शान है और हिंदी बोलने में शर्म? ये तो नही सिखाना चाहा होगा ना हमने अपने बच्चों को ..फिर ये शिक्षा किशोरावस्था होते ही क्यों घुस जाती है अंतर्रमन् में? हिंदी अपने साथ संस्कार भी तो ले आती है और ये विदेशी भाषाएं फिर वही रिश्ते नातों की अवहेलना का कलंक। ना अंग्रेजी हैँ ना हिंदुस्तानी हैँ..हमारे बच्चे अब मंझधार में हैँ..गुमराह हो गये हैँ। 

जागना तो पड़ेगा..सोये रहे तो हिंदुस्तान तो वैसे भी खतरे में ही हैँ। विदेशी तो चले गये पर छोड़ गये अपनी भाषाएँ। अच्छी बात है बच्चे सीख रहे हैँ एक से ज्यादा भाषा पर अपनी संस्कृति को दांव पर रखकर् आगे बढ़ना जीत नहीं हार है।समय समय पर सही और गलत का आभास कराना बहुत ज़रूरी है। टीचर्स करें या पेरेंट्स सही मार्गदर्शन बहुत ज़रूरी है। हम हिंदुस्तानी है, हिंदी हमारी मातृभाषा और ये धरती हमारी माँ है। इसको बचाने के लिए कुछ तो सोचना ही होगा। चिंतन का विषय है।

अपनी राय ज़रूर व्यक्त कीजिये 🙏✍️ अनुजा कौशिक 

Monday, August 9, 2021

ओलम्पिक गेम्स (Olympic Games)


एक बार त्योहार के दौरान हरियाणा जाना हुआ। शाम के समय अधिकतर बच्चों के हाथ में कुछ ना खेल से सम्बन्धित सामान। कोई हाकी लिए हुए , कोई बेडमिंटीन, कोई क्रिकेट बैट, कोई एथलेटिक्स के लिए तैयार। कोई बच्चा पढ़ाई में थोड़ा सामान्य हो तो उसे गेम्स में डाल दो। किसी को कुश्ती सिखा दो। मतलब पढ़ाई से ज्यादा गेम्स का भूत सवार। जिससे बात करो बस हर एक के मुह पर एक ही बात " उसकी छोरी बेडमिंटन में गोल्ड मैडल लाई, उसका छोरा हॉकी और उसका कुश्ती लड़ता है।"

मेरे विचार में हर घर में एक खिलाडी तो पक्का होगा ही। एक ने तो इतना भी कह दिया " नहीं पढ़ेगा तो खेलाँ मैं भेज दूंगा।" ये एक घर की नहीं हर घर की कहानी है। अब ओलिंपिक्स के बाद तो और भी ज्यादा खेलों की लोकप्रियता बढ़ गयी होगी।

नीरज चोपड़ा के गोल्ड जीतने के बाद तो माता पिता की अपेक्षा अपने बच्चों के प्रति और भी बढ़ गयी होंगी। उनकी जीत की खुशी से पूरा देश झूम उठा पर हर बच्चा गोल्ड ले आये ये भी तो ज़रूरी नहीं। 

खेलों में अव्वल आने की अंधी दौड़, परीक्षा में अव्वल आने के लिए प्रतिस्पर्धा, जॉब लग जाए तो और अधिक पाने की लालसा, अतिरिक्त करने की चाह। सभी बच्चे अव्वल नहीं आ सकते..एवरेज़ होना भी अच्छा है ये कब समझेंगे हम। हर बच्चा किसी ना किसी क्षेत्र के लिए बना ही होता है।

सबसे ज्यादा ज़रूरी है खुशी। हमने जितना ज्यादा भीड़ गोल्ड पाने वाले नीरज चोपड़ा के घर देखी उतनी और किसी विजेता के घर नहीं देखी। हम अव्वल आने वाले को ही प्रोत्साहित करते हैँ और जो थोड़ा निचले पायदान पर रह जाए उसे इतनी तवज़्जो नहीं दे पाते। 

आखिर हम एक चीज़ भूल रहे हैँ दुनियाँ में सफलता से ज्यादा ज़रूरी है एक दूसरे के साथ सद्भावना की ज़रूरत। हर इंसान अपने आप में गोल्ड है यदि वो खुद को पहचानकर अपनी पसंद के क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाये और सबसे बड़ी बात अपने अंदर के सुंदर इंसान को कभी भी इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में भटकने ना दे। हर इंसान , हर बच्चा ईश्वर की बनाई हुई अव्वल दर्ज़े की कृति है। हमें एक दूसरे का सम्मान करना आना चाहिए यही है सबसे ऊंचा पायदान। 

अपनी राय ज़रूर व्यक्त कीजियेगा। ✍️  अनुजा कौशिक


मुखौटा ( The Mask)



विश्वास कोई एक तोड़ता है और फिर पूरी दुनियाँ से भरोसा उठ जाता है और फिर सफर शुरु होता है मुखौटा पहनने का..एक झूठी हंसी का मुखौटा, एक *मै ठीक हूँ, अच्छा हूँ का मुखौटा।* क्या रिश्ते इसलिए बनाये जाते हैँ कि हम एक दूसरे को मुखौटा पहनने को मज़बूर कर दे। हम जैसे हैँ वैसे क्यों नहीं रह सकते ? हम जैसा महसूस करते हैँ वैसा क्यों नहीं कह बोल सकते ? ज़िंदगी को क्यों बेमतलब मुश्किल बनाये जाते हैँ ? हर इंसान के सामने एक अलग मुखौटा। मुखौटे बहुत परेशान करते हैँ। कोई तो एक ऐसा हो जिसके सामने ये मुखौटा उतार कर फेंक सकें और हमें पछताना भी ना पड़े। बिल्कुल बच्चे जैसे हों सकें पारदर्शी। बिल्कुल निश्छल और मासूम। हम सभी ने झूठी तरक्की के लिए अपनी मासूमियत खो दी है। क्या ऐसा नहीं है ?✍️ अनुजा कौशिक 

Somebody breaks the trust and then our trust is lost in the whole world and then the journey starts wearing a mask.. A mask of false laughter, a mask of * I am fine, I am good.* Are relationships made just to force each other to wear masks? Why can't we live as we are? Why can't we say what we feel? Why is life made unnecessarily difficult? A different mask in front of every human being. Masks are very annoying. There should be someone in front of whom you can take off this mask and throw it and we should not even have to repent. Be as transparent as a child. Absolutely innocent and pure. We have all lost our innocence to false advances. is not that so ? ✍️ Anuja Kaushik

Sunday, August 1, 2021

जिसका मन पवित्र बस वही है मित्र



दोस्ती सिर्फ एक शब्द नहीं खूबसूरत भाव है। जिसका मन पवित्र बस वही है मित्र। मित्रता करना बहुत आसान और निभाना बहुत मुश्किल। एक सच्चा मित्र ही दुविधाओं,चिंताओं और अवसाद से निकालकर जीवन में उत्साह भर देता है। विश्वास का रिश्ता है मित्रता। एक सच्चा मार्गदर्शक,हितैषी होता है मित्र। हमारा खुश और दुखी रहना इसी बात पर निर्भर करता है कि हमारा मित्र कौन है। 

करण ने दुर्योधन से मित्रता की तो कई बार धर्म के विरुद्ध भी जाना पड़ा और पाप का भागीदार बनना पड़ा। सुदामा ने श्री कृष्ण से दोस्ती की तो उनका उद्धार हो गया। अर्जुन ने इतनी बड़ी सेना को छोड़कर श्री कृष्ण को मित्र बनाया तो उन्हे सारथी के रूप में ईश्वर मिले और गीता का अद्भुत ज्ञान मिला।श्री राम को सुग्रीव दोस्त के रूप में मिले तो जीवन बदल गया..हनुमान जी जैसे भक्त मिले। बहुत सुंदर उदाहरण और भी वर्णित हैँ शास्त्रो में। 

मित्रता  का भाव हर रिश्ते को दिव्य बना देता है। मेरे विचार में हमें खुद का भी एक अच्छा दोस्त होना चाहिए क्योंकि हमारे अंदर का दोस्त ही तय करता है कि बाहर की दुनियां में मैत्री किससे करनी है।झूठी प्रशंसा या निंदा करने वाला मित्र नहीं हो सकता। सच्चा मित्र वही जो सच की ओर ले जाए। 

रिश्ता चाहे वो दोस्ती का हो, माता पिता, पति पत्नी, प्रेमी प्रेमिका, भाई बहन  या कोई और रिश्ता...बिना मैत्री भाव के अधूरा है। मैत्री भाव से ही सच्चा प्रेम पनपता है और सच्चा प्रेम स्वार्थ से परे होता है । ✍️ अनुजा कौशिक

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...