Anugoonz

Monday, September 27, 2021

प्रेरणादायक व्यवहार एवं प्रशंसा भरे शब्द 🤗

 


हमें कभी भी छोटे छोटे प्रशंसा भरे हाव भाव एवं शब्दो व किसी के लिए हमदर्दी भरे शब्दों को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। हमारा व्यवहार और शब्द ऐसे होने चाहियें जिससे किसी के मन को तसल्ली और प्रेरणा मिले। हम अक्सर अपने आस पास के लोगों के द्वारा हो रहीं छोटी छोटी कोशिशों और उनको उनके संघर्षों से जूझकर देखते हुए चुप रह जाते हैँ। इसके विपरीत अगर दो शब्द दिल से हमदर्दी या प्रेम - प्रशंसा के बोल दिये जाएँ तो शायद वे शब्द हमें भीतर तक अच्छा महसूस कराएं या ना कराएं किसी दूसरे के मन आत्मा को प्रोत्साहन ज़रूर दे सकते हैँ। किसी की ज़िंदगी बदल सकते हैँ।

आज जैसे ही बेटे के स्कूल जाते समय एक चाय,समोसा ,पूरी सब्ज़ी बनाने वाले के ठेले के सामने से गुज़रते हुए ख्याल आया कि आज यहीं चाय पीते हैँ । पूरी सब्ज़ी भी पैक करा लेंगें। इतने में एक छोटा सा बच्चा आकर दुकानदार से सिगरेट माँगता है तो दुकानदार कहता है कि हमने सिगरेट बेचनी अब बंद कर दी है।अब मेरा सोशल वर्कर वाला दिमाग और दिल दोनो 😍...मैने दुकानदार से बातचीत शुरु की। सबसे पहले खूब तारीफ़ की उसकी चाय और समोसे की। उसको उसका बिजनेस बढ़ाने के लिए एक दो तरीके मै अपनी पहली विज़िट में बता चुकी थी। लेकिन आज मैने उसकी जमकर तारीफ़ की और समझाया भी कि बहुत अच्छा किया कि आपने अपने ठेले पर सिगरेट, तम्बाकू , गुटका आदि बेचने बंद कर दिये क्योंकि इससे हमारी युवा पीढ़ी भटकाव की तरफ जा रही है। एक इंसान जब किसी अच्छी चीज़ की शुरुआत करता है तो वो समाज के बाकी लोगों को भी प्रेरित करता है।

दुकानदार भी हां में हां मिला रहा था और सहमति के साथ कि कभी अपनी दुकान पर इस तरह की सामग्री नहीं रखेगा। उसकी बातों में उत्साह और सफूर्ती झलक रही थी। शायद मन में एक अच्छाई की ज्योति प्रज्ज्वलित हो गयी थी..भविष्य में और भी ज्यादा अच्छा करने की।

एक शिक्षित और ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमें अक्सर बातचीत करते रहना चाहिए अपने आस पास के लोगों से, उत्साह वर्धन करते रहना चाहिए, प्रशंसा भरे शब्द भी भरपूर प्रयोग में लाने चाहियें और ज़रूरत पड़े तो निंदा भी एक सकारात्मक भाषा में ज़रूर करनी चाहिए। हमें गलत के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करनी और सही के लिए प्रशंसा करनी आनी ही चाहिए।
✍️ अनुजा कौशिक 

Monday, September 20, 2021

एक अलग सोच



ज़िंदगी के अनुकूल प्रतिकूल अनुभवों से यदि आत्मीयता और प्रेम उत्पन्न हुए, मिठास भरी तो मानो हमने ज़िंदगी को सही ढंग से समझा । अकड़, क्रोध पैदा हुआ तो चूक गये हम। कड़वा तो कोई भी बन सकता है। हम मिठास भरकर स्पेशल क्यों ना बनें।आज भी प्रेम, करुणा, दया , सहानुभूति ही ईश्वर को पसंद है। क्यों ना हम कुछ अलग तरीके से सोचें ? क्यों ना दूसरों से थोड़ा अलग और समाधान स्वरूप बनें। दूसरों के लिए ना सही अपने लिए ऐसे बनें क्योंकि हम जैसा सोचते हैँ वैसे ही हो जाते हैँ। 🙏✍️ अनुजा कौशिक 


 

Saturday, September 18, 2021

सकारात्मक बातचीत और हम





हर जगह पोस्ट्स भरी पड़ी हैँ जो बताती हैँ कि हम सभी खुद के अंदर झाँक कर कभी ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करते कि हम कहाँ गलत हैँ । रिश्तेदारी में,दोस्ती में जिससे भी बात करो बस यही शिकायत कि सामने वाला इंसान उन्हें नहीं समझता। एक पक्ष से बात करो तो लगता है वही बिल्कुल ठीक है। दूसरे पक्ष से बात करो तो लगता है कि नहीं भई, दूसरा पक्ष तो गलत हो ही नहीं सकता। तीसरा, चौथा पक्ष सब अपने अपने नज़रिये से बिल्कुल सही। लेकिन कोई किसी से बात नहीं करना चाहता,कोई किसी के साथ धैर्यपूर्वक बैठना नहीं चाहता। नज़रअंदाज़ करते रहेंगे, बातचीत बंद कर देंगे। जिससे समस्या है उससे बात ना करके दूसरों से उस बात की चर्चा करते रहेंगें। मन में गलतफहमियां पालते रहेंगे। एक दूसरे को गलत ठहराते रहेंगें। मगर कभी खुलकर बातचीत करना पसंद नहीं करेंगें। कभी करना भी चाहेंगे तो शिकायतों का इतना बड़ा पुलिंदा कि एक दूसरे को सुनने समझने की ताकत ही खो बैठेंगे क्योंकि पहले से मन में बहुत सारी अवधारणाएं पली बढ़ी होतीं हैँ। स्टेटस डालकर भड़ास निकालना मंज़ूर पर बातचीत करना मंज़ूर नहीं। 


मेरा अनुभव कहता है हम एक दूसरे को तभी तक गलत समझ सकते हैँ जब तक एक दूसरे के साथ धैर्यपूर्वक सम्मानपूर्वक बैठकर , एक दूसरे के नज़रिये को समझकर बातचीत नहीं कर लेते। लेकिन बातचीत का उद्देश्य एक दूसरे को हराना नहीं जिताना होना चाहिए। एक दूसरे को हराने की मंशा तो बहस का रूप धारण कर लेगी और फिर से वही निराशाजनक परिणाम कि कहेंगे :-


 *मैने तो बैठकर बातचीत करने की कोशिश की कोई बात नहीं वो बुरे हैँ हम तो कम से कम अच्छे बने रहें।*


सकारात्मक  बातचीत अगर हम नहीं कर सकते तो फिर तो समस्याओं का हल असम्भव है। मैने देखा है बहुत  बार ..बातचीत करने का मन ही नहीं होता..वक्त ही नहीं होता अपनों के पास, शायद मन में भय होता है कि कहीं हममें कोई कमी ना निकल जाए। खुद को जो अपनी बुराइयों और अच्छाईयों के साथ स्वीकार करने की क्षमता रखता है सिर्फ वही बातचीत करके सकारात्मक हल निकाल सकता है। दूसरों के साथ वही धैर्यपूर्वक बैेठ सकता है जो खुद के साथ धैर्यपूर्वक बैठ सकता है। 


आप क्या सोचते हैँ इस बारे में ? ✍️ अनुजा कौशिक

Tuesday, September 14, 2021

हिंदी मेरी शान..मेरी आन बान


मुझे बहुत से अपनों ने बहुत बार मुझसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई बार बोला कि मै हिंदी में नहीं लिखूं क्योंकि हिंदी पूरे विश्व के लोग नहीं समझ सकते और हमें हमारे लेखन के लिए उतनी राशि भी नहीं मिलेगी जितनी हम अंग्रेजी में लिखकर कमा सकते हैँ। ना मिले तो ना मिले पैसा। मेरे लिए मेरी भावनाओं को व्यक्त करना बहुत ज़रूरी है, मेरा उद्देश्य लोगों को बहुत से ज़रूरी सामाजिक,मानसिक मुद्दों के लिए जागरूक करना है और मै अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति सिर्फ अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बेहतर ढंग से कर सकती हूँ। ऐसा नहीं है कि मेरी अंग्रेजी में पकड़ अच्छी नहीं है पर उसमें मुझे अपनापन महसूस नहीं होता या यूँ कहें अंग्रेजी में मुझे अपनी मिट्टी की खुशबू नहीं आती। लोगों की विशेषकर बच्चों की अंग्रेजी और दूसरी विदेशी भाषाओं में बढ़ती रुचि और हिंदी भाषा की तरफ घटता रुझान एक चिंताजनक विषय है। कौन ज़िम्मेदार है इसके लिए ...हम या हमारी शिक्षा प्रणाली या नौकरियों में अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ का ज़रूरी होना। जब बाकी देशों में अपनी मातृभाषा को ही तवज़्जो दी जाती है तो हमारे अपने देश हिंदुस्तान में हिंदी बोलने और लिखने पर शर्म महसूस क्यों ? हिंदी बोलने पर उतना ही गर्व महसूस होना चाहिए जितना अंग्रेजी बोलने पर होता है। कोई भी भाषा किसी की बुद्धिमता को उत्कृष्ट साबित करने का एक ज़रिया नहीं हो सकती। श्रेष्ठता विचारों से आती है किसी भाषा से नहीं। हिंदी भाषा बोलने व लिखने से कोई कमतर कैसे हो सकता है ? हिंदी हमारी मातृभाषा है उसका सम्मान दिल से होना ही चाहिए। इसीलिए मेरे लिए मेरा हर दिन हिंदी दिवस है। मैं गर्व से कहती हूँ


हिंदी मेरी शान है

यही मेरा अभिमान है

जय हिंद और जय हिंदी

 ह्रदय में दोनो के लिए सम्मान है। ✍️🇮🇳

Friday, September 10, 2021

श्री गणेश चतुर्थी एवं विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस ( धार्मिकता से आध्यात्मिकता की ओर)


आज कितना पवित्र दिन है और खास दिन (विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस) भी जिस पर चर्चा होनी बहुत ज़रूरी है। गणेश चतुर्थी के दिन हम घर में श्री गणेश जी को अपने घर लेकर आते हैँ , बिल्कुल एक परिवार के सदस्य की तरह। और कुछ दिन तक रहने के बाद, पूजा,दिया बाती करने के बाद उन्हें विसर्जित कर आते हैँ ,आँखें अश्रुओं से भर जाती हैँ। ये तो हुआ एक धार्मिक पहलू हम पूजा पाठ करते हैँ और धार्मिकता से आध्यात्मिकता की तरफ कैसे जाया जा सकता है ये श्री गणेश जी ही हमें बताते हैँ। 

    विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस ( World Suicide Prevention day) और गणेश चतुर्थी दोनो आज एक ही दिन हैँ तो हमें आध्यात्मिकता का वास्तविक अर्थ समझना ही होगा। पहले हम समझते हैँ श्री गणेश जी किस बात के प्रतीक हैँ। आज के दिन हमारे लिए ये समझना होगा कि गणेश जी के कान बहुत बड़े हैँ जो प्रतीक हैँ कि हमें खुलकर सबकी बात सुननी चाहिए, हमें एक अच्छा श्रोता होना चाहिए। हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। हम सबकी सुनें लेकिन सिर्फ सत्य को ही मन में ग्रहण करें।श्री गणेश जी निष्कपटता, विवेकशीलता, अबोधिता और निष्कलंकता के प्रतीक हैँ। वे विघ्नकर्ता हैँ। हम भी उनकी तरह ही अच्छे गुण ग्रहण करें और निष्कपट और निश्चल बनें। गणेश जी की आँखें, सूंड और खंडित और अखंड दांत कर्मशः सूक्ष्म दृष्टि, विपदा की पहचान, बुद्धि और श्रद्धा के प्रतीक हैँ। 

 अब बात करते हैँ आत्महत्या की घटनाओं की। हम हर मुद्दे पर बात करना चाहते हैँ लेकिन बात जब ज़िंदगी मे तनाव, डिप्रेशन ,उदासीनता या आत्महत्याओं की आती है तो नेगेटिव फीलिंग्स का बहाना बनाकर अपना मुंह मोड़ लेते हैँ।बातें हम बड़ी बड़ी करते हैँ लेकिन जब अपना कोई नज़दीकी जब इस सबसे गुज़र रहा होता है तो सब उससे नेगेटिव कहकर किनारा कर लेते हैँ। अपनी बात कहने के लिए और दूसरों की बातें सुनने के लिए बहुत साहस चाहिए होता है। आखिर हमारी शिक्षा हमें सिर्फ धार्मिक ही क्यों बनाती है आध्यात्मिक क्यों नहीं ? आध्यात्मिकता हमें ज़िंदगी के हर पहलू के साथ तालमेल बैठाना सीखाती है। यह बताती है हमें कि मानवता सबसे उच्च कोटि का मूल्य है और प्रेम भाव और हमदर्दी सबसे उत्कृष्ट भावना। हम खुलकर बात कह पाते हैँ और अच्छे श्रोता बन पाते हैं। आत्महत्याओं और जीवन के प्रति उदासीनता को रोका जा सकता है यदि हम एक दूसरे के बारे में बात ना करके एक दूसरे से बात करें।गलत राय बनाने से पूर्व समझने का प्रयास करें।

हम अपने इष्टदेव को पूजते हैँ लेकिन उनकी विशेषताओं से क्या कुछ सीख पाते हैँ? श्री गणेश जी अब कुछ दिन एक सदस्य की तरह घर में रहेंगें। सिर्फ दिया बाती ना करके ध्यान मग्न होकर उनकी विशेषताओं को आत्मसात करने की कोशिश करें हम। अच्छे श्रोता बनें, सरल बनें तो कोई हमारे आसपास आत्महत्या नहीं करेगा, कोई जीवन के प्रति उदासीन ही नहीं होगा। हम आराधना के वक्त एक साथ बैठें और प्रण करें कि कोई भी हमारे रहते अकेला महसूस नहीं करेगा। हम खुद भी मुस्कुराते रहें और दूसरो को भी मुस्कुराने की वजह दें तभी हमारे इन श्री गणेश् चतुर्थी जैसे पावन त्योहारों की सार्थकता होगी। 

जय श्री गणेश...आप सभी को श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ...🙏✍️ अनुजा कौशिक










Wednesday, September 8, 2021

शब्द उलझाते हैँ बहुत



ये कविता मैने 24 May 2019 को लिखी थी। ज़िंदगी के यथार्थ से जुड़ी हुई कविता है। 

कविता ·  Reading time: 1 minute

शब्द उलझाते हैं बहुत

जीवन के सभी प्रश्नों का हल है एकान्त में..पर एकान्त तक की यात्रा सुना है पेचीदा ज़रूर है पर फ़िर भी सुखद है…😊

*शब्द उलझाते हैं बहुत
खामोश हो रही हूं मैं धीरे धीरे
वक्त की ज़रूरत है या उम्र का तकाज़ा
समझ रही हूं ए ज़िंदगी
तुझे मैं अब धीरे धीरे
खुद ही खुद की दोस्त
बन रही हूं मैं अब धीरे धीरे
ढूंढने अब ज़िंदगी का उद्देश्य
एकान्त में जा रही हूं धीरे धीरे
खुद से मिलने को हूं आतुर
खामोश हो रही हूं मैं धीरे धीरे*
©® अनुजा कौशिक                                                                                                 

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रोहतक हत्याकांड - मेरे दृष्टिकोण से ( बच्चों में बढ़ती आपराधिक प्रवृति और संस्कारहीनता)




फेसबुक पर कई दिन से एक समाचार दिखाई दे रहा है।  रोहतक ( हरियाणा) में एक 19 वर्षीय बच्चे ने अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी सिर्फ इसलिए कि उसके माता पिता उसे समझ नहीं पा रहे थे और उसकी गलत आदतों के कारण उससे बातचीत और पैसे देने भी बंद कर दिये थे। 

हमें एक माता पिता होने के नाते इस वारदात से एक महत्वपूर्ण सीख मिलती है। इस घटना को थोड़ा अलग नज़रिये से देखते हैँ। लड़के का पिता पेशे से प्रोपर्टी डीलर और पहलवान था। हत्या की खबर देखने के बाद जब मैने उनके परिवार की इंस्टाग्राम आई डी खंगालने की कोशिश की तब पाया कि यहाँ तो किशोर बच्चों की परवरिश में ही कुछ कमी है। परिवार में प्रेम तो दिखाई दे रहा है पर अधिकतर हर तस्वीर में बंदूक नज़र आ ही जाती है। एक जन्मदिन के अवसर पर केक के ऊपर भी डिज़ाइन बन्दूक का ही बनवाया जाता है। 18-19 की उम्र में बच्चे को हौंडा सिटी की चाबी थमा दी जाती है। उसे महंगे महंगे होटलों में रहने की इज़ाज़त भी दी जाती है। फिर बन्दूक और पैसा ही पूरे परिवार की मौत का कारण बन जाता है। 

इस केस से पता चलता है कि बच्चों और माता पिता में खुलकर बातचीत नहीं हो पाती थी। अक्सर हम माता पिता यहाँ पर चूक जाते हैँ बच्चों से जब बात करनी होती है तो उनसे बातचीत बंद कर दी जाती है और फिर पता ही नहीं चल पाता कि बच्चे के मन में आखिर क्या चल रहा है। 

किशोरवस्था एक ऐसी उम्र होती है जिसमे या तो बच्चा पूरी तरह से बिगड़ जाता है या बहुत संस्कारी हो जाता है। इस केस में तो बच्चे को समझने के लिए अच्छा संवाद रखना ज़रूरी नहीं समझा गया बल्कि उसे खुश रखने के लिए महंगे तोहफ़े दे दिये गये। अय्याश बनने का पूरा सामान था। दिल में फिर रिश्तों के प्रति प्यार कहाँ से पनपना था। धन दौलत और बंदूक ही दिखेंगी तो फिर उनके प्रति ही रुझान होगा ना। शायद यही *मै* वाली फीलिंग बच्चे को अपराध करने को मज़बूर कर गयी। जैसा माहौल मिलेगा वैसा ही तो व्यवहार बनेगा। 

किशोरावस्था में परिवार की तरफ से इतनी आज़ादी ? कहाँ जा रहा है, क्यों जा रहा है, किससे मिल रहा है, क्या सीख रहा है, इस बारे में क्या माता पिता का कोई नियंत्रण नहीं था? क्या इन सभी बातों से परिवार के संस्कारों पर सवाल नहीं उठते? क्या बचपन से ऐसी नींव थी कि बच्चे ने अपनेपन से ज्यादा बन्दूक और धन दौलत का इस्तेमाल होते हुए देखा था? क्या हम माता पिता सोचते हैँ कि हम जो घर में , शादी समारोह में,पार्टी में जिस तरह का सोशल व्यवहार करते हैँ वैसा ही ठीक हमारे बच्चे भी जाने अनजाने सीख रहे होते हैँ? कहाँ जा रहा है हमारा समाज एक बच्चे के हाथों उसके ही जन्मदाताओं का और खून के रिश्तो का कत्ल और उसके मन में ज़रा भी ग्लानि उतपन्न नहीं हुई? 

बहुत आहत हूँ ये सोचकर कि हमारे बच्चे जो भविष्य में आदर्श नागरिक बनने चाहियें वे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो रहे हैँ। यह बात बस सिर्फ एक घर की कहानी मानकर नहीं रुकनी चाहिए। हमें विचार करना चाहिए कि हम भविष्य में कैसा समाज चाहते हैँ और हमारा अपना बड़ों का व्यवहार कैसा होना चाहिए क्योंकि हम ही अपने बच्चों के रोल मॉडल होते हैँ और कभी कभी जाने अनजाने प्यार या संवाद की कमी के चलते उनके गुनहगार भी बन जाते हैँ। 

रोहतक के इस केस में भी ऐसा ही हुआ है। खराब पेरेंटिंग, किशोरवस्था में माता पिता का अपने बच्चे की गतिविधियों का पता ही ना होना, बच्चे की खराब संगति जिस पर माता पिता ने शुरु से ध्यान नहीं दिया। इन सभी मिले जुले कारणों ने उस बच्चे को अपराधी बना दिया। 

यहाँ हमारी शिक्षा प्रणाली पर भी प्रश्न उठते हैँ । क्या स्कूली और कॉलेज लेवल की शिक्षा के बावज़ूद भी वो बच्चा शिक्षा का असली मतलब नहीं समझ पाया ? क्या हमारी शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान,पैसे और नाम कमाने तक ही आधारित है? क्या हमारी शिक्षा दया, करुणा, सहानुभूति, और मानवता जैसे सिद्धांतों को दरकिनार कर चुकी है? क्या हमारे स्कूल कॉलेज सिर्फ पैसा कमाने और पैसा कमाना सिखाने तक ही सीमित हैँ। पॉजिटिव एनर्जी कहाँ से आएगी तब समाज में, जब सब स्वार्थ के कटघरे में खड़े हो जाते हैँ? 

इस वारदात के बाद क्या आपको नहीं एहसास होता कि पैसा कमाना ज़रूरी है पर मानवता को नज़रअंदाज़ करके नहीं। इस पृथ्वी पर अब सफल लोगों की इतनी ज़रूरत नहीं है जितनी काउन्सलर्स की है,सामाजिक कार्यकर्ताओं की है,नैतिक शिक्षा की है। हमारे पुराणों और ग्रंथों को शिक्षा में जगह देने की है। नहीं तो ये समाज संवेदनाहीन होकर ही रह जायेगा भी फिर अभिषेक जैसे पता नहीं कितने बच्चे आपराधिक प्रवृतियों के शिकार हो जाएंगे। 

शायद अभिषेक को बाद में एहसास हो कि उसने क्या कर दिया है पर तब तक सिवा पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगेगा। उसके माता पिता,बाकी दोस्त और हमारी अच्छी शिक्षा ऐसा सब होने से रोक सकते थे पर अब आगे के लिए सिर्फ सीख ली जा सकती है। पूरे परिवार के लिए मै सहानुभूति व्यक्त करती हूँ। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे। ॐ शांति 🙏

कमेंट करके बताना आप कितने सहमत हैँ मेरे विचारों से और आप क्या सोचते हैँ ? ✍️ अनुजा कौशिक                                                                                                                                 

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Monday, September 6, 2021

सोच और दृष्टिकोण

 हम कितना भी अच्छा बोलने का प्रयास करें, कितनी भी अच्छी भावनाएं रखें, कितना भी प्रेम दर्शायें..कितना भी सच बोलें, जिन्हें हम अपना समझते हैँ वे हमें सिर्फ उतना ही समझते हैँ जितना वो समझना चाहते हैँ , जितना वो खुद को समझते हैँ। फर्क अगर सोच और दृष्टिकोण का हो तो अनगिनत शब्द भी कोई मायने नहीं रखते।  


*जो इंसान खुद के साथ खुलकर बैठ सकता है वो सभी के साथ खुलकर बैठ सकता है। खुद से सकारात्मक बातें कीजिये।* 🤗

Sunday, September 5, 2021

जीवन के शिक्षक

 



ज़िंदगी के सबसे पहले गुरु मेरे माता पिता जिन्होंने मुझे शुरु से ही अनुशासन में रहने के संस्कार दिये। माँ से मुझे दया,अथक परिश्रम और सहानुभूति जैसे गुण प्राप्त हुए। पापा से मुझे मिली ईमानदार और सहनशील होने की सीख और समाज को एक क्रांतिकारी नज़रिये से देखने की सोच और लेखन विद्या। उन्हें कोटि कोटि प्रणाम इतना खूबसूरत जीवन देने के लिए। 


अगला पड़ाव मेरे स्कूल का था। प्राईमरी स्कूल में मुझे सभी शिक्षकों के नाम याद है शक्ल सूरत के साथ। सभी बहुत अव्वल दर्ज़े के थे, वहीं से नींव पड़नी शुरु हो गयी थी एक अनुशासित व्यक्तित्व की। 


प्राईमरी स्कूल के बाद अगला पड़ाव हमारे नवोदय का आया। प्रतियोगी परीक्षा पास करके वहाँ एडमिशन हुआ। स्कूल में प्रवेश करते ही अमिता मैम से माँ जैसा प्यार मिला। अंजना और शैली मैम ने थोड़ा ढील देते हुए अनुशासन मे रहना सिखाया। हमारी उषा मैम ने हमें बड़े बड़े प्रश्न याद करने सिखाये। कुछ दिन बाद् मधु मैम और सत्यभामा मैम आई और हमें प्ले ग्राउंड के इतने चक्कर लगवाए कि हमें एहसास हुआ कि हम फौज में भर्ती हो गये हैँ ।😁 धीरे धीरे वे हमारे माता पिता जैसे होते चले गये..थोड़े से नर्म और थोड़े से सख्त। दयाशंकर सर, सुनीता वशिष्ठ मैम,कृष्णा मैम, और भी शिक्षक गण अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे।समय पर उठना,अनुशासन में रहना, ज़िंदगी की कठिनाइयो में संघर्ष करते रहना,सामजस्य बैठाये रखना,  सहनशक्ति बनाये रखना,प्रेम से रहना,कभी कभी थोड़े में भी खुश रहना,सादा सच्चा जीवन जीना, रिश्तों को सर्वोपरि रखना, आपसी मेलजोल के साथ रहना सब वहीं पर तो सीखा था। सभी गुरुजनों को इतना कीमती ज्ञान और अनमोल सीखें देने के लिए हार्दिक धन्यवाद।


कॉलेज़ में भी ज़िंदगी की बहुत सारी महत्वपूर्ण सीख मिली। हमारे उस समय के प्रिंसिपल वशिष्ठ सर ने, गौड़ सर, जे ऐन शर्मा सर,दलबीर सर और जे पी सर सभी ने बहुत अच्छे से पढ़ाया और ज़िंदगी में आगे बढ़ने के काबिल बनाया। सभी गुरुओ के द्वारा दिये गये मार्गदर्शन के लिए उन्हे श्रद्धा पूर्वक प्रणाम। 


आखिरी गुरु मेरी ज़िंदगी जिसमें समय समय पर मिले लोगों से मैने बहुत कुछ सीखा। कुछ ने प्रोत्साहित किया, कुछ ने सबक दिया,कुछ ने साथ दिया और कुछ ने साथ छोड़ दिया। फिर भी गर्व से कहती हूँ मेरी ज़िंदगी के अनुभवों ने मुझे हर परिस्थिति में संतुलन बनाना सीखाया,प्रेम ही सर्वोपरि है ऐसा पाठ पढ़ाया। मेरी ज़िंदगी में आने वाला हर इंसान (चाहे अच्छा किया या बुरा) हर मायने में वंदनीय है क्योंकि उन्होने मुझे मज़बूत बनना सिखाया। मेरी ज़िंदगी में आने वाला हर इंसान मेरा गुरु है सभी को सादर प्रणाम 🙏



शिक्षक होना एक बड़ी ज़िम्मेदारी है


 शिक्षक दिवस पर यही कहना चाहूंगी कि शिक्षक बनना एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। शिक्षक बनने से पहले आवश्यक है अपने अंदर सभी सद्गुणों को सम्माहित कर लेना। सच्चा और ईमानदार होना। खुद को अपनी कमियों और अच्छाईयों के साथ स्वीकार करने वाली शख्सीयत ऐसा होना चाहिए शिक्षक। अपना व्यक्तिगत फायदा ना देखे, सिर्फ किताबी ज्ञान ना देवे बल्कि जीवन के हर पहलू पर विचार करना सीखाये,खानापूर्ति ना करके पूर्ण समर्पित हो जावे ऐसे हों हमारे शिक्षक। गुरु परशुराम जैसे, वशिष्ट, भारद्वाज़ और चाणक्य जैसे शिक्षक जो चरित्र के साफ हों और धन लोलुपता से दूर, शिष्यों में शिष्टाचार और नैतिकता भर दें । ऐसे हो हमारे शिक्षक- विचारवान,सभ्य और सत्यशील..तभी शिक्षक होने की सार्थकता है। किताबी ज्ञान तो कोई भी दे सकता है। अपने विचार ज़रूर बताएँ।✍️ अनुजा कौशिक

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...