ये कविता मैने 24 May 2019 को लिखी थी। ज़िंदगी के यथार्थ से जुड़ी हुई कविता है।
कविता · Reading time: 1 minute
शब्द उलझाते हैं बहुत
जीवन के सभी प्रश्नों का हल है एकान्त में..पर एकान्त तक की यात्रा सुना है पेचीदा ज़रूर है पर फ़िर भी सुखद है…😊
*शब्द उलझाते हैं बहुत
खामोश हो रही हूं मैं धीरे धीरे
वक्त की ज़रूरत है या उम्र का तकाज़ा
समझ रही हूं ए ज़िंदगी
तुझे मैं अब धीरे धीरे
खुद ही खुद की दोस्त
बन रही हूं मैं अब धीरे धीरे
ढूंढने अब ज़िंदगी का उद्देश्य
एकान्त में जा रही हूं धीरे धीरे
खुद से मिलने को हूं आतुर
खामोश हो रही हूं मैं धीरे धीरे*
©® अनुजा कौशिक
No comments:
Post a Comment