Anugoonz

Wednesday, March 1, 2023

वो एक अज़नबी दोस्त

ये एक वाक्या है छोटे शहर की शांति से निकलकर बड़े शहर की चकाचौंध में खुद को असहाय पाने का। बहुत दिनों के बाद देहरादून से अपने मायके द्वारका ( दिल्ली) जाना था। देहरादून से जैसे ही दिल्ली जाते हैँ तो दम घुटने जैसा एहसास होता है। यूँ तो देहरादून में भी आजकल भीड़ बहुत ज्यादा है और जाम भी लगता है पर दिल्ली से तो कम ही है। जैसे ही मेट्रो स्टेशन पहुंची तो पता चला कि दिल्ली में द्वारका के स्टेशन एक से कहीं ज्यादा हैं। बड़ी असमंजस की स्थिति थी। वहाँ टिकट काउंटर पर बैठे एक सज़्ज़न से पुछा कि टिकट कहाँ से और कैसे लेनी है? तो उसने एक ऑटोमेटिक मशीन की तरफ ईशारा किया। अब यें क्या बला थी.. देहरादून में तो नहीं देखी थीं कभी ऐसी मशीन। काफ़ी देर तक समझने की कोशिश की कि आखिर टिकट लेनी कैसे हैं। अंडरग्राउंड स्टेशन होने की वजह से घर में भी किसी से बात नहीं हो पा रही थी और मैं बस ईधर से उधर टहले जा रही थीं। महसूस हो रहा था पढ़े लिखे अनपढ़ जैसा। अब मेरी भी क्या गलती थी इसमें.. अब या तो उत्तराखंड की वादियों का मज़ा ले लो या फिर दिल्ली महानगर की टेक्नोलॉजी का। आखिर मुझे एक महिला आती हुईं दिखाई दी। हिम्मत करके मैंने उसके साथ अपनी समस्या साझा की। बहुत ही दोस्ताना व्यवहार था उसका और जल्दी ही हम अच्छे दोस्त बन गये थे। उसने मेरी टिकट लेने में मदद की और बोली *आप पहली बार मेट्रो में अकेले आये हो, होता है ऐसा* और मुझे पता भी नहीं चल पा रहा था कि द्वारका में जाना कहाँ है। आखिर उसके कहने पर किसी सेक्टर की टिकट ना लेकर द्वारका की टिकट ली गयी। उसके साथ से थोड़ा इज़ी महसूस कर रही थी। खूब गप्पे शप्पे हुईं। एक दूसरे की ज़िंदगी के बारे में बातें साझा की गयीं। थोड़े ही देर में बहुत अच्छे मित्र जो बन गये थे। जैसे मानो बहुत वर्षों से एक दूसरे को जानते हों। थोड़ी देर बाद घर वालों से भी सम्पर्क हो गया और सही तरीके से मैं घर पहुंच सकी। उस दिन एहसास हुआ कि हर इंसान का हमारी ज़िंदगी में आना कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं होता, कोई ना कोई कारण अवश्य होता है। आज भी हम सोशल मीडिया पर जुड़े हैं। ज़ब भी वो वाक्या याद आता है तो एक मुस्कुराहट होठों पर दौड़ जाती है। धन्यवाद मेरे उस अज़नबी दोस्त का जो थोड़ी देर के लिए ज़िंदगी में आई और मेरी मुस्कुराहट का कारण बनी । यही तो है ज़िंदगी ठीक से समझें तो छोटे छोटे पल भी ख़ुशी दे जाते हैं। ज़िंदगी में हम एक दूसरे को कैसा महसूस कराते हैं ये बहुत ज़रूरी है क्योंकि हमने किसको कैसा महसूस कराया और किसी ने हमें कैसा महसूस कराया ये कभी नहीं भूलाया जा सकता। इसलिये सबके साथ अच्छी यादें बनाना बहुत ज़रूरी है ताकि कभी एकान्त में हम उन सुनहरी यादों को याद करके खुश हो सकें। है कि नहीं? आप सब क्या कहते हैं? 😊✍️अनुजा कौशिक



नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...