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Saturday, October 9, 2021

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ( World Mental Health Day )

 


#worldmentalhealthday2021 

मानसिक स्वास्थ्य और हम। मेरा मनपसंद विषय जिस पर अक्सर लिखना और बोलना पसंद करती हूँ क्योंकि सबसे पहले हम मनुष्य है- भावनाओं से निर्मित ईश्वर की अनूठी कृति। सारे जीवन की गुणवत्ता हमारी भावनाओं की गुणवत्ता पर ही निर्भर करती है। 


आये दिन ना जाने कितनी घटनायें हमारे आसपास होती हैँ, ना जाने कितने लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण मौत को गले लगाते हैँ। कभी कभी हम खुद भी जूझ रहे होते हैँ अपने अतीत के ट्रॉमा से,अपने दिन प्रतिदिन की उलझनों से, रिश्तों में घुटन से।


 इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में हर कोई अपनी ज़िंदगी जीने में लगा है..सब बीजी हैँ, कोई किसी के लिए अब ज़िम्मेदारी महसूस नहीं करता, संवेदनाहीन हो गये हैँ। दया, करुणा,सहानुभूति जैसे शब्द तो बस जैसे अब दिखावे के लिए रह गये हैँ । कोई अब बैठकर पीठ थपथपाना नहीं चाहता, कोई सुनना, समझना नहीं चाहता..पता नहीं कहाँ जाना है इंसान को। प्रेम भाव तो जैसे लुप्त हो गया। ईश्वर को विभिन्न रूपों में पूजने वाले इस देश में हम उनके गुणों को आत्मसात नहीं करते बस आडंबर किये जाते हैँ। 


थक जाता है इंसान खुद को व्यक्त करते करते , खुद को समझते समझाते और जब अपनी भावनाओं के भंवर में फंसकर जब असहाय महसूस करता है तो रुख करता है किसी अपने विश्वसनीय रिश्ते की ओर और वहाँ भी लगती है ठोकर क्योंकि ज़ज़ करने लगते हैँ अपने और गलत ठहराने लगते हैँ। जिस बात का डर था वही होता है। अब मज़बूत बनकर भावनाओं को दबाकर अकेले में रोते रहने के सिवा और कोई चारा नहीं। या तो बिखर गया या निखर गया। बहुत बुरी परिस्थिती में आत्महत्या को गले लगा लेता है।


एक दूसरे के मानसिक स्वास्थ्य के लिए हम सभी एक दूसरे के अपराधी हैँ । कौन है जो जीवन में संघर्ष नहीं करता ? कौन है जो किसी मानसिक उलझन से नहीं गुज़र रहा ? कौन है जिसकी ज़िंदगी बिल्कुल सीधी सादी गुज़र् रही है ? जब किसी की मौत हो जाती है तो पहुँच जाते हैँ हम नकली आँसू बहाने, अर्थी को कंधा देने। जीते जी वे कंधे कहाँ चले जाते हैं? जीते जी क्यों नहीं वक्त निकाल पाते ? क्यों मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करना आज भी एक Social Stigma है?


आज के दिन हमें प्रण लेना चाहिए कि कोई भी इंसान आसपास परेशान होगा और हमारे पास अपनी समस्या लेकर आएगा तो हम इग्नोर नहीं करेंगे। बिना ज़ज़ किये सुनकर समझकर उसकी समस्या का हल ढूंढने में उसकी सहायता करेंगे। खुशहाल रिश्ते ही खुशहाल मानसिक स्वास्थ्य की नींव हैँ। शेयर और केयर ही है समस्या का असली हल। वो कहते हैँ ना  *If you wish to be happy..Practice Compassion & If you wish to make others happy- Practice Compassion*  ✍️ अनुजा कौशिक

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