Anugoonz

Tuesday, June 15, 2021

विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस



मेरी आज की पोस्ट बुज़ुर्गों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता को लेकर समर्पित है। कोशिश कर रही हूँ अपने अनुभवों के आधार पर कुछ लिखने की..शायद कुछ न्यायसंगत लिख पाऊँ। 

एक दिन देहरादून के एक हॉस्पिटल में जाना हुआ और वहाँ पर एक बुज़ुर्ग दम्पति से मिलना हुआ। चलने फिरने में असक्षम थे पर फिर भी जैसे तैसे ड्राइवर के साथ फिजियोथेरेपी के लिए पहुंचे थे। मैंने उन्हें नमस्ते की और थोड़ी देर में ही उनसे अच्छा सम्बन्ध स्थापित हो गया। बातों बातों में उनसे उनके बच्चों के बारे में पता चला कि बच्चे विदेश में अच्छी जॉब पर हैँ और वे साथ नहीं जाना चाहते। पूछने पर पता चला कि बच्चे अपनी आज़ादी चाहते हैँ और हम अपनी। 

ऐसे ही अपनी जान पहचान के कुछ बुज़ुर्गों से मिलना हुआ कई बार। मुझे उनके साथ बैठकर दिल खोलकर बात करने का मौका बहुत बार मिला। लेकिन हर बार यही ज़वाब मिला कि साथ में रहकर दुर्व्यवहार हो..संतुलन ना बन पाए..इससे अच्छा तो है कि अलग रहकर ही ज़िंदगी बिता दी जाये।

बुज़ुर्गो से बातचीत के आधार पर मेरे विचार:- 

बहुत से बुज़ुर्गों के अनुभवों के आधार पर मुझे यही आभास हुआ कि उन्हे ये लगता है कि बच्चों के साथ रहने पर कुछ घुटन सी होती है क्योंकि विचार नहीं मिल पाते। बच्चों क़ी अनचाही रोक टोक से वे आहत होते हैँ..पूरी ज़िंदगी उन्होंनें अपने ढंग से जीवन जीया और अब बच्चे उन्हें अपने ढंग से चलाना चाहते हैँ। कभी कभी तो उन्हें अपनी प्राइवेसी भंग होती हुई नज़र आती है । बच्चे उनसे आर्थिक और मानसिक आजादी छीन लेना चाहते हैँ। जिन बच्चों को उन्होंने खून पसीना एक करके लाड प्यार से पाला हो तो उनका ऊँची आवाज़ में बात करना बर्दाश्त्त नही हो पाता। अपने निर्णय लेने की क्षमता का छिन जाना भी कभी कभी मानसिक अवसाद का कारण बनता है और कई तरह की बिमारियों से घिर जाने का डर भी होता है। प्रोपर्टी के लिए भी कभी कभी सन्तानों द्वारा माता पिता को परेशान किया जाता है। शारीरिक रूप से तो होता ही है कभी कभी,पर मानसिक रूप से दुर्व्यवहार बहुत अधिक होता है। एक से अधिक भाई होने पर तो बात यहां तक पहुंच जाती है कि माँ को कौन अपने साथ रखेगा और पिता को कौन अपने साथ रहेगा। आजकल वृद्धाश्रम का चलन बहुत बढ़ गया है और जो साथ रहते हैँ वे घर की चार दीवारी के बीच प्रताड़ित होते हैँ और भी बहुत से मुद्दे हैँ जिनके कारण माता पिता अपने आपको अलग थलग रखना चाहते हैँ । सोचते हैँ उन्हे भी अपनी जिंदगी आज़ादी से जीने का हक है।

बुज़ुर्गों की सुरक्षा के लिए कानून में प्रावधान :- 

बुजुर्गों की इन्हीं समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए तथा लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम संघ की सलाह पर संयुक्त राष्ट्र ने 2006 में प्रस्ताव 66 /127 के तहत 15 जून को "बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम दिवस" मनाना प्रारंभ किया।

बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक मानवाधिकार का मुद्दा है। 2017 में 'हेल्पेज  इंडिया' के मुख्य कार्यकारी अधिकारी' मैथ्यू चेरियन' का कहना है कि- 'आंकड़ों ने मुझे चौंका दिया बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक संवेदनशील मुद्दा है। 

पिछले कुछ सालों से हम घरों के बंद दरवाजों के पीछे बुजुर्गों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार का अध्ययन कर रहे हैं परंतु जब हमने सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ दुर्व्यवहार का आंंकलन किया वह भी विचारणीय है।'

बुजुर्गों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को 6 कैटिगरीज में बांटा जा सकता है-
सरंचनात्मक और सामाजिक दुर्व्यवहार
अनदेखी और परित्यक्तता
असम्मान और वृद्धों के प्रति अनुचित व्यवहार करना
मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और गाली-गलौज करना
शारीरिक रूप से मारपीट करना
आर्थिक रूप से दुर्व्यवहार करना

बुज़ुर्गों के लिए बहुत से प्रावधान हैँ क़ानून में जिनका प्रयोग करके वे एक सुरक्षित और सम्मानजनक ज़िंदगी जी सकते हैँ 

 इस मुद्दे पर मेरे विचार और निष्कर्ष :- 

उपरोक्त समस्याएँ चिंतन करने योग्य हैँ । मेरे विचार से बुज़ुर्गों के साथ पर्याप्त समय बिताना, साथ नहीं रह सकते तो समय समय पर फोन पर बात करते रहना, बच्चों को उनके साथ खेलने देना, उन्हे घर के अति महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदार बनाना। उनके मनोरंजन के लिए उनका ख्याल रखना। उनके साथ शील सौम्य भाषा का प्रयोग करना। ये सब बुज़ुर्गों की सभी समस्याओं को दूर कर सकते हैँ 

वहीं एक दूसरा पहलू भी है बुज़ुर्गों को अगर शांत और प्रेममय वातावरण चाहिए तो वे भी अपनी ज़िम्मेदारियां समझें। समय के साथ चलने की कोशिश करें। बच्चों की भावनाओ को समझने की कोशिश करें,गाली गलौच वाली भाषा का प्रयोग ना करें। अनावश्यक टिप्पणी ना करें और अपनों पर थोड़ा विश्वास भी बनाये रखें। जो बात बुरी लगे उसे खुलकर कहें लेकिन धैर्य के साथ। चूँकि आजकल भाग दौड़ भरी ज़िंदगी है और बच्चे आधुनिक ज़िंदगी जीना चाहते हैँ तो अनावश्यक दखल ना करें । उन्हे भी अपनी ज़िंदगी खुलकर जीने दे और खुद भी जीयें।

कुल मिलाकर यही कहना चाहूंगी कि बुज़ुर्गों के प्रति सदव्यवहार हमारा कर्तव्य बनता है। उन्हे उनके अधिकारों से वँचित रखना ईश्वर के प्रति धोखा करना है क्योंकि वे धरती पर ईश्वर का ही स्वरूप हैँ। वहीं बुज़ुर्गों को भी चाहिए कि वे भी अपने ज़माने के साथ साथ थोड़ा आधुनिकता के साथ भी तालमेल बैठाने की कोशिश करें और वहीं युवाओं को चाहिए कि वे आधुनिकता के चक्कर में अपने सस्कारों को ही ना भूल जाएँ ।दोनो पीढ़ियों के स्वस्थ तालमेल से ही सुदृढ सुरक्षित समाज की नीव सम्भव है और अगर तालमेल बैठाना सम्भव ना हो तो अलग रहकर भी एक दूसरे की देखभाल की जा सकती है। कभी कभी थोड़ा दूर रहकर भी परसपर प्रेम और भाईचारा बनाया रखा जा सकता है।

आपको ये पोस्ट कैसी लगी..अपनी राय ज़रूर व्यक्त कीजियेगा। ✍️ अनुजा कौशिक 

8 comments:

  1. Well written about most important situation in the whole world ...keep it up Anuja

    ReplyDelete
  2. Nicely written ma'am 🙏

    ReplyDelete
  3. Well written bhabhi.. Hume lagta h ki bujurgon ke prati jo bhi durvyavahaar humare samaj me hote h unko rokne ka prayas to hume karna hi chahiye iske alawa meri soch h iski roktham k liye hume apne bacchon ko kabhi kabhi vradhashram lekar bhi jana chahiye jiss se k wo bujurgon se baat karke apne vivek aur samajh se nirnay lene me saksham bane aur apne bhavishya me iss tarah k apradh ( bujurgon k prati durvyavhar) ko badhawa na de..

    ReplyDelete
  4. बहुत ही बढ़िया और दिल को झकझोर देने वाला लेख है, आजकल हर बुजुर्ग की कहानी लगभग एक सी ही है, हमें बुजुर्गों के विचारों का सम्मान करना चहिये उन्हें अधिक से अधिक वक्त देना चहिये

    ReplyDelete
  5. Absouletely amazing ❤️��

    ReplyDelete
  6. Exquisitely written. Logo ko issi cheez ki awareness chahiye. Keep it up, amazing ❤️

    ReplyDelete

नारी शक्ति के लिये आवाज़ #मणिपुर

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता' जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं। यही मानते हैं ना हमारे देश में? आजक...