खामोशी भी एक तरह की आत्महत्या ही है..दबी हुई भावनाएं अक्सर घुटन पैदा करती है..ना जाने कितनी बार खुद को दिलासा देता है इंसान..ना जाने कितनी बार अंदर ही अंदर मरता है..ना जाने कितनी ही बार खुद को हिम्मत देकर खड़ा करता है..खुद से प्यार करने की कोशिश करता है..देखता है अपने चारों ओर हर इंसान में एक हमदर्द..लेकिन पाता है पहले से भी ज्यादा खुद को अकेला..मानसिक दबाव बढ़ता जाता है और फिर ख़ामोशी उसे अपनी ओर खींचने लगती है..आत्महत्या तो इंसान बाद में करता है..उसकी हत्या तो अंदर से पहले ही हो चुकी होती है.. कितने सारे अपने..सोशल मीडिया पर कितने सारे दोस्त..कितना शोर आसपास और फिर भी इंसान खामोश..यही विडंबना है आज के समय की..किसी के पास समय नहीं किसी के पास बैठने का..बात करने का..सब मोबाइल के टच में व्यस्त है पर वास्तव में टच में कोई नहीं..मानवीय संवेदनाएं तो जैसे कहीं खो सी गयी है..कोई अब किसी का ख्याल नहीं रखता..दयाभाव नहीं रखता..इंसान बस मशीन बन गया है..दौड़ता जा रहा है..भागता जा रहा है पता नहीं कहाँ..अंतिम सत्य तो मन की शांति है और वो एक स्वस्थ समाज में मिलेगी और स्वस्थ समाज का निर्माण स्वस्थ और ऊँची मानसिकता से ही सम्भव है..हम सभी एक दूसरे से जुड़े है और एक दूसरे का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य भी है और नैतिक ज़िम्मेदारी भी..मानवीय संवेदनाओं को बनाये रखने की सख्त ज़रुरत है अन्यथा भावी समाज की स्थिति तो और भी भयावह होगी..आप क्या सोचते है इस बारे में ?? ✍️✍️अनुजा
Nicely explanation.... Keep it up And keep going ��
ReplyDeleteExcellent thoughts 👍👍
DeleteIndeed. I agree with your views.❤
ReplyDeleteNicely written ma'am
ReplyDeleteNicely written ma'am
ReplyDeleteNicely written ma'am
ReplyDeleteVery true ,nice and keep it up,
ReplyDeleteYes you are right Bhabhi but it's not 100 % true. There are many people around who are really worried any careful for others and help each other in need.achhai kam hui h khatam nahi.. .Hope is still there. Aur Yahaan har insaan doshi bhi hai Aur bhuktbhogi bhi.
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