Anugoonz

Sunday, December 27, 2020

आध्यात्मिकता और धार्मिकता


 "बाबू जी राधे राधे..कौन से मंदिर जाना है..प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर या बाँके बिहारी"..प्रेम मंदिर वृन्दावन के सामने उतरते ही एक आवाज़ हमारे कानों में पड़ी..अनसुना करते हुए हम आगे बढ़े.. एक छोटा सा लड़का हाथ में तिलक का कटोरा लिये हुए हमारी तरफ आता है और कहता है.. "अंकल जी तिलक लगवा लीजिए.. पैसे भले ही मत देना"..हम कुछ कहते वो उछल कर बेटे के माथे पर एक तिलक लगा देता है..थोड़ा सा आगे और बढ़ते हैं हम..क्योंकि गीता जयंती होने की वजह से बहुत ज्यादा भीड़ थी और शहर के अंदर गाड़ी ले जाने की मनाही थी तो पहले बांके बिहारी जी के दर्शन करने की सोची सो ई-रिक्शा करके वहाँ पहुंचे तो एक बहुत लम्बी कतार हमारा इंतज़ार कर रही थी..पुलिस प्रबंधन जैसे कमज़ोर पड़ गया था..तभी एक व्यक्ति आया और बोला, " बोला 200 रूपये दे दीजिये आपको कतार में सबसे आगे पहुँचा दूंगा.. दर्शन भी बहुत अच्छे करा दूँगा" हमने कोई उत्तर नहीं दिया..पुलिस के आसपास होते हुए भी लोग बेखौफ़ ऐसा प्रस्ताव रख रहें थे शायद कोई कमीशन उन्हें भी मिलता ही होगा.. खैर भीड़ को देखते हुए और कोरोना के ख़तरे को भाँपते हुए हम दूर से ही हाथ जोड़ते हुए..ईश्वर से क्षमा याचना करते हुए इस्कॉन मंदिर की ओर चले जाते हैं..वहाँ मंदिर के सामने भीख मॉंगने वाले लोग खड़े होना मुश्किल कर देते हैं.. तभी एक बूढ़े बाबा हमारे पास आये और कुछ माँगने लगे तो हम बोले " बाबा, चाय पी लो और कुछ खा लो" तो उन्होंने दूध पीने की इच्छा जाहिर की..उनके लिये दूध का आर्डर देकर हम शॉपिंग करने लगते हैं.. थोड़ी देर बाद देखते हैं कि कोई और इंसान भी उस बाबा के लिये दूध आर्डर कर रहा होता है.. राधे राधे का उच्चारण करते हुए कितने ही तिलक लगाने वाले इधर उधर घूम रहें होते हैं.. इस्कॉन मंदिर के सामने भजन नृत्य होते देखकर हम भी शामिल हो गये.. इस्कॉन की आरती देखने के लिये कतार में लगते हैं.. 20 मिनट के बाद संध्या आरती देखने का मौका मिलता है और अंदर घुसते ही तुंरत दूसरे दरवाज़े से बाहर जाने को कहा जाता है..बाहर श्री मद्भगवद गीता को बेचने के लिये कुछ लोग अपनी स्टॉल लगाकर खड़े हैं.. हम एक पुस्तक खरीद भी लेते हैं..

प्रश्न मन मस्तिष्क में बार बार यही उठता है कि क्या भगवान श्री कृष्ण जी ने गीता में यही उपदेश दिया था कि मेरे दर्शन के लिये खूब धक्का मुक्की करना बिना पूजा अर्चना का मर्म जाने?  मैं हिन्दू होते हुए अपने धर्म की सम्पूर्ण इज़्ज़त करती हूँ लेकिन कुछ लोगों ने इसे एक व्यवसाय बना लिया है इसका मैं पूरा और सख्त विरोध करती हूँ.. कितनी लम्बी लाइन लगी हैं..गरीब लोग तिलक लगाते घूम रहें हैं..फ़ुटपाथ पर छोटा मोटा सामान बेच रहें हैं.. 

श्रद्धा से कुछ गरीब लोगों को दान कर देना और भूखे को भोजन करा देना.. किसी की आत्मा को शांति और ख़ुशी देना शायद यही सच्चे रूप से आध्यात्मिक होना है..इतनी भीड़ में जब इंसान के ऊपर इंसान गिर रहा है तो मानसिक शांति कहाँ से मिलेगी..सिर्फ मंदिर की लाइट्स देखने के लिये जाना और दूसरों की देखा देखी लम्बी कतार में खड़े होकर गपशप करना ये तो आध्यात्मिक होना नहीं है.. आध्यात्मिकता अंतर्मन को जगा देती है..भजन और पूजा अर्चना मन को शांति देते हैं लेकिन भीड़ भटकाव पैदा करती है..हमें धार्मिक होने के साथ आध्यात्मिक भी होना है..यही है ईश्वर की सच्ची आराधना.. आप क्या कहते हैं इस बारे में ?? ✍️✍️

1 comment:

  1. Bilkul sahi..india over populated country h..isliye har jagh bheed hoti h..khas kar public holidays ya kisi special day. Yadi aap darshan aur adhyatam ke liye kisi famous mandir ya religious place jana chahte h to apko apne visiting time m changes karne honge...kyunki population aur usse Judi problems ko to khatam nahi kiya ja sakta

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