ज़िंदगी के अनुकूल प्रतिकूल अनुभवों से यदि आत्मीयता और प्रेम उत्पन्न हुए, मिठास भरी तो मानो हमने ज़िंदगी को सही ढंग से समझा । अकड़, क्रोध पैदा हुआ तो चूक गये हम। कड़वा तो कोई भी बन सकता है। हम मिठास भरकर स्पेशल क्यों ना बनें।आज भी प्रेम, करुणा, दया , सहानुभूति ही ईश्वर को पसंद है। क्यों ना हम कुछ अलग तरीके से सोचें ? क्यों ना दूसरों से थोड़ा अलग और समाधान स्वरूप बनें। दूसरों के लिए ना सही अपने लिए ऐसे बनें क्योंकि हम जैसा सोचते हैँ वैसे ही हो जाते हैँ। 🙏✍️ अनुजा कौशिक
Waah👌
ReplyDeleteNice think👍👍
ReplyDeleteVery true
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