Anugoonz

Sunday, August 22, 2021

रक्षाबंधन पर विशेष


फेसबुक की एक पोस्ट पर लिखा था कि आत्मा को ईश्वरीय मर्यादाओं में बांधकर रखना ही सच्ची सुरक्षा है और हाथ पर राखी बाँधना उन्हीं मर्यादाओं के पालन करने की शपथ लेने का यादगार है। मन को छू गयी ये पंक्तियां कि हम सभी में ईश्वर का वास है। हम सभी एक दूसरे में ईश्वर को देखें। प्यार को पैसे से ना तोलें। जब तक इस पृथ्वी पर ईश्वर के दिये गये कार्यों को करने की अवधि समाप्त नहीं हो जाती हम खुद को तराशते रहें। हम महसूस करें कि हम सभी ईश्वर के भेजे गये सिर्फ प्यादे भर हैँ। ये रिश्ते नाते तो सिर्फ यहाँ जीवन को आसान बनाने के लिए बनाये गये हैँ और हम मुश्किल् बनाये जाते हैँ। हर त्योहार का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ खुद को प्रेम से भर लेना हैँ। यही ईश्वर का संदेश है। 

और एक बात थोड़ी सी हटकर...एक सांसारिक प्राणी होते हुए नर और मादा का स्वरूप निभाने का अवसर जो ईश्वर् ने हमें दिया है उस पर खरा उतरना हमारा प्रथम कर्तव्य है। मै अक्सर देखती हूँ ये कहते हुए कि हमारे समाज में एक नारी और एक पुरुष कभी सच्चे दोस्त नहीं हो सकते। अक्सर कहते देखा जा सकता है वो तो मेरी बहन जैसी है और वो तो मेरे भाई जैसा है। पारिवारिक रिश्तों में भाई बहन ठीक है। लेकिन सभी को भाई बहन बना लिया जाए ये हमेशा सम्भव नहीं। क्या एक स्त्री या पुरुष को सम्मान देने के लिए उसे भाई या बहन की उपाधि देना ज़रूरी होता है ? मुझे लगता है हमें इस सोच से थोड़ा ऊपर उठने की ज़रूरत है। किसी औरत का सम्मान उसे दोस्त मानकर भी किया जा सकता है। हम अपने पुत्रों पुत्रियों को ऐसी शिक्षा शुरु से ही क्यों नहीं देते कि वे एक दूसरे की भावनाओं को सम्मान देना सीखें। हमें अपनी रूढ़िवादी सोच को बदलने की ज़रूरत है। नहीं तो समाज में वही सब होता रहेगा जो सदियों से होता आया है।अपनी बहन जैसी इज़्ज़त दूसरों की बहन को भी देने के लिए सोच और नज़रिया
तो बदलना ही पड़ेगा। अपने शब्दकोष से मां बहन की गालियों को हमेशा के लिए निकाल देना ही एक औरत का सच्चा सम्मान है। सोच बदलेंगी तो ही रक्षाबंधन की सार्थकता है। 
अपने विचार ज़रूर व्यक्त कीजियेगा। आप क्या सोचते हैँ इस बारे में। ✍️ अनुजा कौशिक 
 

3 comments:

  1. Legit 💯. Agreed with almost everything you've written down here. Keep it up

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  2. हमेशा की तरह इस बार बढ़िया.... पर ये कल्पनादर्श है....😔

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