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Wednesday, August 11, 2021

पाश्चात्य बनाम भारतीय संस्कृति और हमारे बच्चे




हमारी हिंदी फ़िल्में हमारे समाज का आईना होती हैँ। पुरानी या बीच के समय की फिल्मो में अक्सर किसी इंसान की बिगड़ैल प्रकृति को दिखाने के लिए अकसर तेज़ अंग्रेजी गानों पर डांस करते हुए दिखाया जाता था और हम अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व महसूस करते थे। अंग्रेजी हमने भी सीखी थी पर अपनी मातृभाषा हिंदी का सम्मान करना कभी नहीं छोड़ा। हम जब सुबह सोकर उठते थे तो गायत्री मंत्र का अलार्म बजता था और हम शान्ति महसूस करते हुए ईश्वर को प्रणाम करते हुए बिस्तर से उठते थे। मंदिरों में सुंदर भजनों की आवाज़ सुनकर सवेरा शुभ हो जाता था। 

और एक अब है। बच्चों ने सीखा है हिंदी में गिनती गिनना और हमने संस्कार भी देने की कोशिश की है अपने जैसे क्योंकि हमें पता है भविष्य में शांति पाने के लिए लौटकर तो यहीं आना होगा। पर फिलहाल यही चिंतन का विषय है हमारे बच्चे आखिर कहाँ दौड़े जा रहे हैँ। सुबह सुबह जब अलार्म बजता है तो एनिमे ( Anime) या पाश्चात्य संगीत का स्वर बजता है। बच्चे एनिमे ( कॉमिक्स का डिजिटल रूप में विकसित रूप) देखने के लिए पागल हुए जाते हैँ। मानती हूँ पढ़ाई में आजकल के बच्चे कुशाग्र बुद्धि के हैँ पर मुझे लगता है कि कहीं ना कहीं ये सब चीज़े हमारे बच्चों में चिड़चिड़ाहट वाला व्यवहार पैदा कर रही हैँ। स्टेटस पर भी कोई भूत जैसे दिखने वाले एनिमे करैक्टर लगे होते हैँ। अंग्रेजी गानो के सारे सिंगर्स के नाम पता हैँ पर हिंदी में कोई रूचि नहीं। अंग्रेजी में गिनती आती है पर हिंदीं में गिनती समझ आती नहीं। विदेशी भाषाओं के तेज़ म्यूजिक पर थिरकते कदम और झूमती गर्दन और हिंदी की तरफ कोई रूझान नहीं। 

हम कहते हैँ फक्र से हम हिंदुस्तानी हैँ पर क्या हमारे बच्चे रहे अब हिंदुस्तानी हैँ ? किसका है कुसूर.. कौन है इन बच्चों का अपराधी ? खुद हमारी उम्मीदें या बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धाएं ? अंग्रेजी में गिटर् पीटर बोलना माना अच्छा है पर हिंदी का अपमान करना क्या ज़रूरी है ? अंग्रेजी बोलने में शान है और हिंदी बोलने में शर्म? ये तो नही सिखाना चाहा होगा ना हमने अपने बच्चों को ..फिर ये शिक्षा किशोरावस्था होते ही क्यों घुस जाती है अंतर्रमन् में? हिंदी अपने साथ संस्कार भी तो ले आती है और ये विदेशी भाषाएं फिर वही रिश्ते नातों की अवहेलना का कलंक। ना अंग्रेजी हैँ ना हिंदुस्तानी हैँ..हमारे बच्चे अब मंझधार में हैँ..गुमराह हो गये हैँ। 

जागना तो पड़ेगा..सोये रहे तो हिंदुस्तान तो वैसे भी खतरे में ही हैँ। विदेशी तो चले गये पर छोड़ गये अपनी भाषाएँ। अच्छी बात है बच्चे सीख रहे हैँ एक से ज्यादा भाषा पर अपनी संस्कृति को दांव पर रखकर् आगे बढ़ना जीत नहीं हार है।समय समय पर सही और गलत का आभास कराना बहुत ज़रूरी है। टीचर्स करें या पेरेंट्स सही मार्गदर्शन बहुत ज़रूरी है। हम हिंदुस्तानी है, हिंदी हमारी मातृभाषा और ये धरती हमारी माँ है। इसको बचाने के लिए कुछ तो सोचना ही होगा। चिंतन का विषय है।

अपनी राय ज़रूर व्यक्त कीजिये 🙏✍️ अनुजा कौशिक 

5 comments:

  1. Apne bilkul sahi kha hmari hindi khi kho gyi very nice 👍👍👍👍👍

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  2. Very nicely written ...we r forgetting our culture and importance of our language in blind race of following western culture...keep it up Anuja

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  3. Bilkul sahi baat.. Burai English me nahi h.. Na sikhne me na Bolne me but English ko fashion maanne me hai..aur Hindi ko out of fashion maanne me.... Yahin hamari roots kamjor horhi h.. Agar hamsabhi ne Dhyaan nahi Diya to kahin Hindu dharm bilupt na hojaaye.... Bichaar karne ki baat h... Hamare maata pita se Jo sanskaar naturally hamare andar Aagye the US maahol me rhkar kya ham Vo maahol derahe h...? Phle parties na hokar sundar kaand,bhagwat,ramayan,durga jaagran hote the.abb sab change h. Sahi issue uthaya h aapne bhabhi. Keep it up. 👍

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