Anugoonz

Saturday, September 18, 2021

सकारात्मक बातचीत और हम





हर जगह पोस्ट्स भरी पड़ी हैँ जो बताती हैँ कि हम सभी खुद के अंदर झाँक कर कभी ढूंढ़ने की कोशिश नहीं करते कि हम कहाँ गलत हैँ । रिश्तेदारी में,दोस्ती में जिससे भी बात करो बस यही शिकायत कि सामने वाला इंसान उन्हें नहीं समझता। एक पक्ष से बात करो तो लगता है वही बिल्कुल ठीक है। दूसरे पक्ष से बात करो तो लगता है कि नहीं भई, दूसरा पक्ष तो गलत हो ही नहीं सकता। तीसरा, चौथा पक्ष सब अपने अपने नज़रिये से बिल्कुल सही। लेकिन कोई किसी से बात नहीं करना चाहता,कोई किसी के साथ धैर्यपूर्वक बैठना नहीं चाहता। नज़रअंदाज़ करते रहेंगे, बातचीत बंद कर देंगे। जिससे समस्या है उससे बात ना करके दूसरों से उस बात की चर्चा करते रहेंगें। मन में गलतफहमियां पालते रहेंगे। एक दूसरे को गलत ठहराते रहेंगें। मगर कभी खुलकर बातचीत करना पसंद नहीं करेंगें। कभी करना भी चाहेंगे तो शिकायतों का इतना बड़ा पुलिंदा कि एक दूसरे को सुनने समझने की ताकत ही खो बैठेंगे क्योंकि पहले से मन में बहुत सारी अवधारणाएं पली बढ़ी होतीं हैँ। स्टेटस डालकर भड़ास निकालना मंज़ूर पर बातचीत करना मंज़ूर नहीं। 


मेरा अनुभव कहता है हम एक दूसरे को तभी तक गलत समझ सकते हैँ जब तक एक दूसरे के साथ धैर्यपूर्वक सम्मानपूर्वक बैठकर , एक दूसरे के नज़रिये को समझकर बातचीत नहीं कर लेते। लेकिन बातचीत का उद्देश्य एक दूसरे को हराना नहीं जिताना होना चाहिए। एक दूसरे को हराने की मंशा तो बहस का रूप धारण कर लेगी और फिर से वही निराशाजनक परिणाम कि कहेंगे :-


 *मैने तो बैठकर बातचीत करने की कोशिश की कोई बात नहीं वो बुरे हैँ हम तो कम से कम अच्छे बने रहें।*


सकारात्मक  बातचीत अगर हम नहीं कर सकते तो फिर तो समस्याओं का हल असम्भव है। मैने देखा है बहुत  बार ..बातचीत करने का मन ही नहीं होता..वक्त ही नहीं होता अपनों के पास, शायद मन में भय होता है कि कहीं हममें कोई कमी ना निकल जाए। खुद को जो अपनी बुराइयों और अच्छाईयों के साथ स्वीकार करने की क्षमता रखता है सिर्फ वही बातचीत करके सकारात्मक हल निकाल सकता है। दूसरों के साथ वही धैर्यपूर्वक बैेठ सकता है जो खुद के साथ धैर्यपूर्वक बैठ सकता है। 


आप क्या सोचते हैँ इस बारे में ? ✍️ अनुजा कौशिक

10 comments:

  1. Nicely written aunty. It was well structured and about the real social dilemma

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  2. AGREE WITH YOU BHABHI,BUT ADHIKTAR LOG VOHI SOCHTE HAIN JO AAPNE KAHA..KHUD KO SAHI DOOSRE KO GALAT AUR ANTT TAK YAHI MAANTE HAIN. TO SOLUTION NIKALNA BAHUT MUSHKIL HAI. GALAT BAAT EK LEVEL KE BAAD NORMAL HUMAN BEING KE LIYE BARDASHT SE BAAHAR HOJAATI HAI. CONVERSATION DONO TARAF SE EQUAL HONA JARURI HAI OTHERWISE OF NO USE.

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  3. बहुत बढ़िया..👌👌👏👏👏

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  4. You are right Di. But aaj ky time mi galat or sahi ki koi definition nahi hai. Aap galat hai ya sahi ye time per depend kerta hai. Agar time acha chal raha hai to logo ke nazro mi aap galat hoker bhi sahi. Agar time kharab hai to aap sahi hotey huey bhi galat.

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    1. I am not saying about this kaun shi kaun galat..my main point is nobody is perfect..we don't communicate well and also don't accept ourselves fully with our good qualities and shortcomings both... We want to win at any cost..we don't want to communicate & Communication is the only key for a healthy relationship .

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  5. बातचीत कभी भी क्या गलत और कौन गलत के आधार पर नहीं हो सकती। इसके लिए समाधान खोजने की इच्छा शक्ति बहुत ज़रूरी है।

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    1. Bilkul sahi kaha aapne Anuja. Jaroori hai bàat cheet ka hona jid chor kar.

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  6. Baat nanhi karna hi samasya ka pramukh kaaran hai.Baat karne se hi baat banti hai par na jaane kyon jid ki vajah se hum baat nanhi karte aur galatfehmiyan aur bar jaati hain. Aur jab baat ho jaati hai to pata lagta hai ki baat kuch bhee nanhi thee surf galatfehmi thee aur phir mehsoos hota hai ki kaash pehle hi baat kar li hoti. Par pehle aap pehle aap ke chakkar meyn hum baat bara dete hain. Anuja aapne bahut uchit mudda uthaaya hai. Dhanyavaad.

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  7. Real truth ..We can solve happy problems

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  8. Bilkul real kha 👍👍👍👍

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